मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी के विधायकों के शोर-शराबे के बीच पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने सिर्फ सात मिनट में अपना अभिभाषण ख़त्म किया और सदन से बाहर निकल गए। इस दौरान बीजेपी के विधायक शोर मचाते रहे और चुनाव बाद की राजनीतिक हिंसा का मुद्दा उठाते रहे।
राज्यपाल ज्योंही अभिभाषण के लिए खड़े हुए, बीजेपी सदस्य अपनी-अपनी सीट पर खड़े हो गए और शोर मचाने लगे, नारेबाजी करने लगे। उन्होंने हाथ में पोस्टर ले रखे थे, जिन पर चुनाव बाद हिंसा के बारे में लिखा गया था।
राज्यपाल ने अभिभाषण शुरू किया और पढ़ते रहे, वे थोड़ी देर के लिए रुक गए। स्पीकर बिमान बनर्जी और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ उन्होंने थोड़ी सी बात की और लिखा हुआ अभिभाषण फिर पढ़ने लगे।
लेकिन बीजेपी सदस्यों का शोरगुल जारी रहा। लगभग सात मिनट में ही राज्यपाल ने अभिभाषण पूरा किया और तेज़ी से सदन से बाहर निकल गए।
क्या कहा था राज्यपाल ने?
राज्यपाल ने पहले ही यह संकेत दे दिया था कि वे ममता बनर्जी सरकार का दिया हुआ अभिभाषण नहीं पढ़ेंगे। यदि ऐसा होता तो एक संवैधानिक संकट खड़ा हो जाता। संविधान के अनुसार, राज्यपाल निर्वाचित सरकार की सिफ़ारिश और अनुशंसा के आधार पर ही काम करते हैं। इस हिसाब से वे अभिभाषण पढ़ने को बाध्य होते हैं।
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व्यावहारिक तौर पर यह हो सकता है कि राज्यपाल अभिभाषण में बदलाव करने का संकेत राज्य सरकार को दें और सरकार उनकी बात मान ले। पर जिस तरह का आक्रामक और युद्ध की स्थिति राज्यपाल और सरकार के बीच पश्चिम बंगाल में है, उसमें यह व्यावहारिक नहीं है।
राज्यपाल को राज्य सरकार का अभिभाषण पढना था और उन्होंने वैसा ही किया भी।
चुनाब बाद राजनीतिक हिंसा का मुद्दा पश्चिम बंगाल में अब पुराना पड़ चुका है और इस पर बीजेपी के लोगों ने शोर-शराबे के अलावा कुछ ख़ास नहीं किया है। इस मुद्दे पर बीजेपी ने एक बार भी कहीं भी कोई विरोध प्रदर्शन नहीं किया, कोई सभा नहीं की, कोई जुलूस नहीं निकाला।
निगाहें मुकुल राय पर!
बीजेपी के ज़्यादातर सदस्य समय से पहले ही सदन में पहुँच चुके आ गए थे। विपक्ष के नेता और बीजेपी विधायक शुभेंदु अधिकारी उनकी अगुआई कर रहे थे। इतना ही नहीं, विरोध प्रदर्शन के दौरान भी अधिकारी सबसे आगे और मुखर थे।
लोगों की निगाहें मुकुल राय पर टिकी हुई थीं। मुकुल राय तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं, पर वे तकनीकी रूप से अभी भी बीजेपी के ही सदस्य हैं, उन्होंने ने तो विधानसभा से इस्तीफ़ा दिया है औ न ही बीजेपी ने उन्हें निकाला है। पर मुकुल राय शोर मचाने वालों में नहीं थे। वे चुपचाप अपनी सीट पर कौतुहल भरी निगाहों से सबकुछ देख रहे थे।
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हाई कोर्ट का आदेश
जिस समय यह शोरगुल मचा हुआ था, उसके थोड़ी देर पहले ही चुनाव बाद हिंसा के मामले में कलकत्ता हाई कोर्ट ने एक अहम आदेश दिया। हाई कोर्ट ने राज्य की पुलिस को आदेश दिया कि वह चुनाव के बाद हुई हिंसा के मामले के सभी पीड़ितों के केस दर्ज करे।
ग़ौरतलब है कि बंगाल में चुनाव नतीजों के बाद कई जगहों पर हिंसा हुई थी और बीजेपी ने सत्तारूढ़ टीएमसी पर आरोप लगाया था कि उसके कार्यकर्ताओं ने गुंडागर्दी की हदें पार कर दी हैं।
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मामले की सुनवाई कर रही हाई कोर्ट की पाँच जजों की बेंच ने ममता सरकार से कहा है कि वह हिंसा में पीड़ित लोगों का इलाज सुनिश्चित करे और सभी को राशन भी उपलब्ध कराए चाहे पीड़ितों के पास राशन कार्ड हों या नहीं।
हाई कोर्ट ने राज्य के मुख्य सचिव को आदेश दिया कि वे चुनाव के बाद हुई हिंसा मामलों से जुड़े सभी कागजातों को सुरक्षित रखें। इसके अलावा हिंसा में मारे गए बीजेपी नेता अभिजीत सरकार का फिर से पोस्टमार्टम कराने के निर्देश भी हाई कोर्ट ने दिए।
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