पिछले दस वर्षों के दौरान राज्यपाल अपनी संवैधानिक मर्यादाओं को लांघते दिखे हैं। हाल में यह प्रवृत्ति केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल में प्रमुखता से देखी गई है। तमिलनाडु और केरल के मामले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय को दखल देना पड़ा ताकि राज्य में प्रशासन सुचारू रूप से चल सके लेकिन पश्चिम बंगाल के राज्यपाल द्वारा उठाया गया यह कदम बेहद चौंकाने और डराने वाला है। 12 सितंबर को पश्चिम बंगाल के राजभवन से एक बयान जारी किया गया। इसमें कहा गया कि "ममता बनर्जी के खिलाफ बढ़ते जन विरोध और लोगों को न्याय देने में सरकार की निष्क्रियता और संवैधानिक मर्यादाओं के खुले उल्लंघन को देखते हुए, बंगाल के राज्यपाल डॉ. सीवी आनंद बोस ने आज ममता बनर्जी के सामाजिक बहिष्कार की घोषणा की है।"
यौन उत्पीड़न और एक ऐक्टिविस्ट राज्यपाल!
- विश्लेषण
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- 29 Mar, 2025

संविधान सभा ने बहुत सोच समझकर राज्यपाल को ‘नियुक्त’ करने की व्यवस्था पर ज़ोर दिया था न कि सीधे जनता द्वारा प्रत्यक्ष चुनाव के माध्यम से। यह सब इसलिए किया गया ताकि राज्यों में जनता द्वारा चुने गये मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच कोई टकराव न हो। राज्यपाल को राज्य का कार्यकारी प्रमुख बनाया गया और व्यवहार में वो केंद्र सरकार के एजेंट के रूप में कार्य करने लगा। पश्चिम बंगाल और अन्य गैरभाजपाई शासित राज्यों में यही दिख रहा है। राज्यपाल केंद्र के एजेंट बन गए हैं। पत्रकार कुणाल पाठक की टिप्पणीः