त्रिपुरा का चुनाव सत्तारूढ़ भाजपा के लिए नाक और साख का सवाल बन गया है. वाम-कांग्रेस गठजोड़ और एक स्थानीय पार्टी टिपरा मोथा, जिसके किंग मेकर होने की संभावना जताई जा रही है, के उभार ने भगवा पार्टी के लिए मुश्किलें पैदा कर दी हैं. यहां अबकी दिलचस्प चुनावी समीकरणों ने 60 सीटों वाली इस विधानसभा के चुनाव को राष्ट्रीय सुर्खियां दिला दी हैं. भाजपा ने अपने घोषणापत्र में राज्य के कई आदिवासी क्षेत्रों को 'स्वायत्तता' देने का वादा किया है. इससे इन क्षेत्रों को अपना प्रशासन पूरी तरह अपने हाथ में मिल जाएगा और उसमें किसी बाहरी हस्तक्षेप की संभावना नहीं रहेगी. पर्यवेक्षकों का कहना है कि इससे पूर्वोत्तर में अलगाववाद को बढ़ावा मिल सकता है.


एक ओर भाजपा ने जहां सत्ता में वापसी के लिए पूरी ताकत लगा दी है वहीं वाम-कांग्रेस गठबंधन अबकी उसे सत्ता से उखाड़ फेंकने के लिए जोर लगा रहा है. दूसरी ओर, शाही घराने के उत्तराधिकारी प्रद्योत बिक्रम माणिक्य देबबर्मन ने मुकाबले को तिकोना बना दिया है. राजनीतिक हलकों में धारणा बन रही है कि अबकी प्रद्योत की क्षेत्रीय पार्टी टिपरा मोथा किंगमेकर साबित हो सकती है.