त्रिपुरा में कांग्रेस और सीपीएम मिलकर चुनाव मैदान में उतरेंगे। सीपीएम के महासचिव सीताराम येचुरी और कांग्रेस के राज्यसभा सांसद मुकुल वासनिक बुधवार को त्रिपुरा में थे, जहां येचुरी ने मिलकर चुनाव लड़ने का ऐलान किया। त्रिपुरा में मार्च में विधानसभा के चुनाव होने हैं और पूर्वोत्तर का यह राज्य कांग्रेस और वामदलों के साथ ही बीजेपी के लिए भी बेहद अहम है।
सीताराम येचुरी ने कहा कि हमारा फोकस सभी सेक्युलर ताकतों को एकजुट कर बीजेपी की हार को सुनिश्चित करने का है जिससे त्रिपुरा और संविधान को बचाया जा सके।
जबकि दूसरी ओर बीजेपी ने अब तक राज्य सरकार में सहयोगी इंडिजनस पीपल्स फ्रंट ऑफ़ त्रिपुरा (आईपीएफटी) के साथ गठबंधन को लेकर अपने पत्ते नहीं खोले हैं। हालांकि बीजेपी के नेताओं ने ऐसा संकेत दिया है कि वह आईपीएफटी के साथ मिलकर ही चुनाव लड़ेंगे।
2018 में बीजेपी और आईपीएफटी ने मिलकर विधानसभा का चुनाव लड़ा था। इस गठबंधन ने 60 सीटों वाली त्रिपुरा की विधानसभा में 44 सीटों पर जीत हासिल की थी। इसमें बीजेपी को 36 और आईपीएफटी को 8 सीट मिली थीं। सीपीएम को 16 सीटों पर जीत मिली थी।
एक वक्त में त्रिपुरा में बड़ी ताकत रही कांग्रेस 2018 में एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं रही थी और उसे सिर्फ 2 फीसद वोट मिले थे। हालांकि कांग्रेस को पिछले साल जून में हुए विधानसभा उपचुनाव में एक सीट पर जीत मिली थी।
लेकिन इस बार एआईसीसी की ओर से त्रिपुरा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के नेताओं से बूथ लेवल के स्तर तक काम करने के लिए कहा गया है।
2018 के विधानसभा चुनाव में सीपीएम और बीजेपी को मिले वोटों में डेढ़ फीसद से कम का अंतर रहा था। सीपीएम को 42.22 फीसद वोट मिले थे जबकि बीजेपी को 43.59 फीसद वोट मिले थे। ऐसे में कांग्रेस और सीपीएम जब मिलकर चुनाव में उतर रहे हैं तो निश्चित रूप से वे बीजेपी को कड़ी टक्कर दे सकते हैं। अगर वे एक अन्य क्षेत्रीय दल तिपरा मोथा को साथ लाने में कामयाब हो जाते हैं तो सत्ता में वापसी का बीजेपी का रास्ता लगभग बंद हो सकता है।
कांग्रेस-वाम दलों का रिश्ता
इससे पहले कांग्रेस ने साल 2020 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में भी सीपीएम के साथ गठबंधन किया था जबकि केरल में कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) और वामदलों के नेतृत्व वाले गठबंधन लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) की सीधी लड़ाई है। याद दिलाना होगा कि साल 2004 में बनी मनमोहन सिंह की सरकार को भी सीपीएम के नेतृत्व वाले वाम दलों के गठबंधन ने समर्थन दिया था। बिहार में आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन में कांग्रेस और वाम दल शामिल हैं।
त्रिपुरा को लेकर बीजेपी आलाकमान बेहद गंभीर है क्योंकि राज्य में 25 साल पुराने वाम दलों के शासन को उखाड़कर उसने 2018 में पहली बार अपनी सरकार बनाई थी।
त्रिपुरा बीजेपी में रहा घमासान
त्रिपुरा बीजेपी में लंबे वक़्त तक पूर्व मुख्यमंत्री बिप्लब देब के खिलाफ पार्टी के विधायकों ने झंडा बुलंद किया हुआ था और आखिरकार बीते साल मई में बीजेपी को देब को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाना पड़ा था। देब की जगह पर मणिक साहा को राज्य का नया मुख्यमंत्री बनाया गया था। पांच विधायक भी बीजेपी छोड़ चुके हैं।
सरकार बचाने की कोशिश में बीजेपी
त्रिपुरा बीजेपी में लंबे वक्त तक चले घमासान के बाद बीजेपी ने इस राज्य को बचाने के लिए पूरा जोर लगा दिया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 5 जनवरी को राज्य में बीजेपी की जन विश्वास यात्रा शुरू की थी। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी 12 जनवरी को अगरतला में जन विश्वास यात्रा में शामिल हुए। इस यात्रा के अलावा पार्टी 200 बैठकें, 100 पदयात्राएं और 50 बड़े रोड शो भी करेगी।
बीजेपी ने केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी, प्रतिमा भौमिक और सर्बानंद सोनोवाल, त्रिपुरा के मुख्यमंत्री डॉ. माणिक साहा, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा और त्रिपुरा के राज्यसभा सांसद बिप्लब कुमार देब को यात्रा के लिए स्टार प्रचारक बनाया है। जन विश्वास यात्रा 56 विधानसभा क्षेत्रों से होकर गुजरेगी। पार्टी को उम्मीद है कि इस यात्रा के जरिए उसे विधानसभा चुनाव से पहले लोगों के बीच पहुंचने में मदद मिलेगी।
टीएमसी और तिपरा मोथा
ममता बनर्जी की अगुवाई वाली टीएमसी भी इस बार त्रिपुरा के विधानसभा चुनाव में जोर-शोर से उतर रही है। एक अन्य क्षेत्रीय दल तिपरा मोथा ने आईपीएफटी को चुनाव में गठबंधन करने का न्यौता दिया है। फरवरी, 2021 में अपने गठन के बाद इस राजनीतिक दल ने राज्य के आदिवासी इलाकों में अपनी पहुंच तेजी से बढ़ाई है।
तिपरा मोथा ने बीते साल हुए त्रिपुरा के स्वायत्त जिला परिषद के चुनाव में जीत हासिल की थी। तिपरा मोथा के अध्यक्ष प्रद्योत माणिक्य देबबर्मा ने साल 2019 में कांग्रेस को अलविदा कह दिया था। तिपरा मोथा 60 में से 45 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहा है। यह राजनीतिक दल ग्रेटर तिपरालैंड की मांग करता रहा है। प्रद्योत माणिक्य देबबर्मा का कहना है कि जो भी राजनीतिक दल ग्रेटर तिपरालैंड बनाने का वादा करेगा, वह उसी के साथ चुनावी गठबंधन करेंगे।
खबरों के मुताबिक, बीजेपी और कांग्रेस, दोनों तिपरा मोथा के साथ चुनाव गठबंधन को लेकर चर्चा कर रहे हैं। त्रिपुरा की 60 विधानसभा सीटों में से आदिवासी बहुल 20 सीटों पर तिपरा मोथा का असर है और इसीलिए बीजेपी और कांग्रेस इस राजनीतिक दल को अपने साथ लाना चाहते हैं।
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