बहुत सारे लोग शायद साठ साल पहले के वृंदावन की कल्पना नहीं भी कर पाएँ! मैं यहाँ सिर्फ़ उस ‘कुंज’ या ‘निधि वन’ की चर्चा करना चाहता हूँ जो कई छोटे-छोटे पेड़ों, लताओं से अच्छादित था।
रसखान, हसरत मोहानी, ताज बीबी...और कई नाम हैं, जिन्होंने मुसलमान होते हुए भी कृष्ण प्रेम में कविताएं लिखी। लेकिन अब इस गंगा जमुनी संस्कृति और बहुलतावाद को मानो ग्रहण लग गया है।
कृष्ण यानी हज़ारों वर्षों से व्यक्त-अव्यक्त रूप में भारतीय जनमानस में गहरे तक रचा-बसा एक कालजयी चरित्र, एक धीरोदात्त नायक, एक लीला-पुरुष, एक महान तत्वशास्त्री, एक आदर्श प्रेमी और सखा, एक महान विद्रोही, एक युगंधर… युगपुरुष।
नज़ीर अकबराबादी ने उर्दू और ब्रजभाषा में जो कुछ भी लिखा वह इतिहास की धरोहर है। कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर उनकी वह नज़्म नक़ल कर रहा हूँ जिसको मैं बहुत पसंद करता हूँ।