देश में कोरोना वायरस का सबसे पहला पॉजिटिव मामला केरल में 30 जनवरी को आया था और अब वहाँ 7 मई को एक भी नया मामला नहीं आया है। साफ़-साफ़ कहें तो केरल ने कोरोना को नियंत्रित कर लिया है। यह वह राज्य है जहाँ की अर्थव्यवस्था पर्यटन और विदेश में रहने वाले केरल के लोगों पर ज़्यादा निर्भर है। दुनिया भर में कोरोना संक्रमण के बाद बड़ी संख्या में लोग विदेश से अपने राज्य में लौटे। राज्य में पहले तीन मामले भी चीन से लौटे लोगों में ही पाए गए थे। केरल में हर रोज़ हज़ारों देशी-विदेशी पर्यटक जाते रहे थे। यानी केरल में कोरोना संक्रमण फैलने का ख़तरा कहीं ज़्यादा रहा।
मार्च की शुरुआत में भारत में सिर्फ़ छह मामले थे जिनमें से तीन केरल में थे। लेकिन अब जब देश भर में 55000 से ज़्यादा मामले आ चुके हैं तो केरल में सिर्फ़ 503 मामले हैं। इसमें से भी 474 पूरी तरह ठीक हो चुके हैं। देश भर में जहाँ 1886 लोगों की मौत हुई है वहीं केरल में सिर्फ़ 4 लोगों की। केरल में कोरोना वायरस मरीज़ों की मृत्यु दर 0.6 फ़ीसदी है, जबकि देश भर में यह क़रीब 3.3 फ़ीसदी है। देश भर में जहाँ फ़िलहाल क़रीब 38 हज़ार संक्रमित लोग हैं तो केरल में सिर्फ़ 25 लोग हैं। तो यह चमत्कार कैसे हुआ?
इस चमत्कार को 'केरल मॉडल' में ढूँढा जा सकता है। एक तो विकास का 'केरल मॉडल' और दूसरा कोरोना से लड़ने का 'केरल मॉडल'। कोरोना से लड़ने में दोनों मॉडलों ने ही कमाल का काम किया है।
1970 के दशक से ही केरल में आर्थिक और सामाजिक विकास का मॉडल रहा है। इसमें शिक्षा और स्वास्थ्य पर ज़बरदस्त काम हुआ। वहाँ जो भी सरकारें आईं उन्होंने इसे बरकरार रखा। तभी तो राज्य में शिक्षा दर लंबे समय से क़रीब 100 फ़ीसदी है और स्वास्थ्य संकेतकों पर भी राज्य अव्वल रहा है। राज्य में 1000 जनसंख्या पर 2.9 बेड उपलब्ध हैं जो कि इटली जैसे सबसे बढ़िया स्वास्थ्य व्यवस्था वाले पश्चिमी देशों के आसपास ही है। इस मॉडल ने कोरोना से लड़ने के लिए केरल में आधार का काम किया। लेकिन यदि कोरोना से लड़ने के लिए कोई मॉडल नहीं होता तो शायद केरल भी नहीं लड़ पाता। ऐसा मामला इटली, फ़्रांस, जर्मनी जैसे पश्चिमी देशों में भी देखने को मिला है जहाँ स्वास्थ्य व्यवस्था दुनिया में सबसे बेहतर है फिर भी वहाँ स्थिति नहीं संभली। फिर सवाल है कि कोरोना से लड़ने का केरल का मॉडल क्या है?
केरल मॉडल
राज्य ने कोरोना को नियंत्रित करने के लिए पुष्ट वैज्ञानिक मानकों पर चलने का तय किया और सफल प्रयोगों को अपनाया। इसे दो स्तरों पर बाँटा जा सकता है-
- ज़बरदस्त तैयारी और जाँच की व्यवस्था पर ज़ोर
- टेस्ट करो, ट्रेस करो, आइसोलेट करो और इलाज करो
जब चीन में कोरोना वायरस ने पैर फैलाना शुरू कर दिया था तभी केरल ने तैयारी भी शुरू कर दी थी। केरल के वित्त मंत्री टीएम थॉमस इसाक ने भी 'द इंडियन एक्सप्रेस' में लेख लिखा है कि 'एक बार जब वुहान महामारी की ख़बर आई, केरल के स्वास्थ्य विभाग ने तत्परता दिखाई- नियंत्रण कक्ष स्थापित किया गया, मॉक ड्रिल का आयोजन किया गया और वायरस के पहले झोंके को नियंत्रित कर लिया गया। एक बार खाड़ी और यूरोप के प्रवासियों ने लौटना शुरू किया तो चीजें हाथ से निकलने लगीं। लेकिन अब यह लड़ाई सफलतापूर्वक संपन्न हो गई है।'
वित्त मंत्री इसाक कहते हैं कि तैयारी केरल की सफलता के लिए महत्वपूर्ण शब्द है और इससे सीखा जाने वाला महत्वपूर्ण सबक़ भी।
संक्रमण फैलने से पहले ही हज़ारों वॉलिंटियर तैयार किए
तैयारी की बात इसाक इसलिए कहते हैं कि जब संक्रमण फैलने का ख़तरा था उससे पहले ही राज्य के हज़ारों स्वास्थ्य कर्मियों और वॉलिंटियरों को मैप और फ़्लोचार्ट मुहैया करा दिया गया था जिससे कि आक्रामक तरीक़े से कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग की जा सके और स्थिति को नियंत्रित किया जा सके। केरल ने दक्षिण कोरिया की तर्ज पर सरकार के साथ-साथ समाज को इस काम में जोड़ा और यहाँ तक कि छात्रों को भी कियोस्क सेंटर पर लगाया जिससे जाँच सैंपल की प्रक्रिया को आसान बनाया जा सके। उन सभी को उचित प्रशिक्षण दिया गया कि कैसे स्थिति से निपटना है।
दक्षिण कोरिया में भारत से सिर्फ़ 10 दिन पहले यानी 20 जनवरी को पहला मामला आया था। इसने भी ज़बरदस्त तैयारी की। तैयारी का ही नतीजा था कि बिना लॉकडाउन के ही उसने कोरोना पर काबू पा लिया।
28 दिन का क्वॉरंटीन
केरल ने विदेश से लौटने वाले लोगों के लिए 28 दिन का क्वॉरंटीन ज़रूरी कर दिया था। राज्य ने दस मार्च को ही स्कूल को बंद कर दिया था और दूसरी तरह के सामाजिक- सांस्कृतिक कार्यक्रमों में लोगों के इकट्ठे होने पर प्रतिंबध लगा दिया था। कोरोना वायरस को लेकर 3.4 लाख लोगों को फ़ोन के ज़रिए काउंसिल की गई।
तैयारी का ही नतीजा है कि केरल की स्वास्थ्य व्यवस्था मज़बूत होने के बावजूद राज्य सरकार ने हॉस्पिटलों में 4000 करोड़ रुपये का निवेश किया। केरल के वित्त मंत्री का कहना है कि 7775 नये पद सृजित किए गए।
डब्ल्यूएचओ का नुस्खा अपनाया
चूँकि स्वास्थ्य व्यवस्था को दुरुस्त स्थिति में ला दिया गया था तो राज्य सरकार के सामने कोरोना वायरस से लड़ने के लिए ठोस रणनीति की ज़रूरत थी। ऐसे में इसने विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ का नुस्खा अपनाया। यह नुस्खा चार बिंदुओं पर केंद्रित है- टेस्ट करो, ट्रेस करो, आइसोलेट करो और इलाज करो। केरल सरकार ने इस पर सख़्ती से पालन किया। इस वायरस का अब तक कोई इलाज नहीं ढूँढा जा सका है और इसको फैलने से रोकने का सबसे बेहतरीन तरीक़ा यही है कि ज़्यादा से ज़्यादा जाँच हो, जल्दी रिपोर्ट आए और पॉजिटिव आए लोगों को अलग-थलग रखा जाए। राज्य ने लॉकडाउन को भी सख़्ती से लागू कराया। संदिग्धों पर ज़बरदस्त निगरानी रखी गई। अभी भी 16 हज़ार से ज़्यादा लोग निगरानी में हैं। इसमें से 310 आइसोलेशन वार्ड में निगरानी में हैं। राज्य के वित्त मंत्री इसाक ने 17 अप्रैल को दावा किया था कि उन्होंने काफ़ी पहले ही 2 लाख लोगों के ठहरने और दूसरी सुविधाओं की व्यवस्था कर ली थी।
अप्रवासी मज़दूरों और ग़रीबों की बेहतर स्थिति का भी दावा किया गया है। राज्य के वित्त मंत्री ने 17 अप्रैल को अपने एक लेख में दावा किया कि 55 लाख बुजुर्गों और वंचितों को कल्याणकारी भुगतान के रूप में 8,500 रुपये मिले। कल्याण कोष से प्रत्येक श्रमिकों को 1,000-3,000 रुपये का भुगतान किया गया। इसके अलावा भी खाना मुहैया कराने जैसे उपाए करने के उन्होंने दावे किये। इससे कोरोना से लड़ने में सहूलियतें हुईं।
विशेष प्रशिक्षण, सुरक्षात्मक गियर, तार्किक ड्यूटी रोटेशन और, सबसे महत्वपूर्ण, सामाजिक सहानुभूति और एकजुटता के कारण स्वास्थ्य कर्मियों का मनोबल भी ऊँचा रहा है। दूसरे राज्यों की तरह केरल में बड़ी संख्या में स्वास्थ्य कर्मी कोरोना से संक्रमित नहीं हुए हैं।
स्वास्थ्य कर्मियों और कोरोना के ख़िलाफ़ लड़ाई में जुटे दूसरे सभी लोगों को एक बड़ा फ़ायदा इसका भी मिला कि निपाह वायरस से लड़ने और दो बार ज़बरदस्त तबाही वाली बाढ़ से निपटने का उनके पास अनुभव था। क्या केरल का यह अनुभव दूसरे राज्यों और राष्ट्रीय स्तर पर नीति बनाने में काम नहीं आ सकता है?
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