सऊदी अरब एक के बाद एक सुधार के क़दम उठा रहा है। इसने पहले महिलाओं को कार चलाने, खेल प्रतियोगिताओं, कंसर्ट में जाने की आज़ादी दी, अब यह कोड़े मारने वाली सज़ा को ख़त्म करने जा रहा है। इसकी घोषणा भी कर दी गई है। तो क्या अब मध्यकालीन बर्बर क़ानून-क़ायदों में जकड़ा सऊदी अरब बाहर आज की दुनिया में निकलने के लिए छटपटा रहा है? क्या कोड़े मारने की सज़ा को ख़त्म कर इसने उस दकियानूसी मानसिकता से बाहर आने की प्रक्रिया को और तेज़ कर दिया है?
कोड़े मारने की सज़ा को ख़त्म कर कितना ‘मॉडर्न’ बना सऊदी अरब?
- दुनिया
- |
- |
- 26 Apr, 2020

सऊदी अरब एक के बाद एक सुधार के क़दम उठा रहा है। इसने पहले महिलाओं को कार चलाने, खेल प्रतियोगिताओं, कंसर्ट में जाने की आज़ादी दी, अब यह कोड़े मारने वाली सज़ा को ख़त्म करने जा रहा है।
कोड़े मारने की सज़ा को ख़त्म करना इतना अहम क्यों माना जा रहा है और क्यों यह दुनिया भर में ख़बर बनी? दरअसल, कोड़े मारने की सज़ा को अमानवीय माना जाता है और इसे मानवाधिकार का हनन करने वाला क़रार दिया जाता रहा है। हाल के वर्षों में कोड़े मारने का एक चर्चित मामला 2014 में आया था और इसे मानवाधिकार हनन का मामला बताया गया था। तब सऊदी अरब के ही मानवाधिकार कार्यकर्ता और ब्लॉगर रइफ बदावी को इसलाम का अपमान करने के आरोप में 10 साल जेल और 1000 कोड़े मारे जाने की सज़ा सुनाई गई थी। यह ख़बर दुनिया भर में चर्चा में रही थी। तब इस क़ानून की काफ़ी आलोचना हुई थी और कहा गया था कि ऐसी सज़ा तो तब दी जाती थी जब कभी सामंती-व्यवस्था हुआ करती थी और बर्बर क़ानून हुआ करते थे।