कोरोना वायरस का असर फेफड़े ही नहीं, बल्कि किडनी पर भी घातक हो रहा है। यानी कोरोना के गंभीर मरीज़ों को बचाने में सिर्फ़ वेंटिलेटर ही काफ़ी नहीं है, बल्कि अब किडनी की डायलिसिस मशीन की भी उतनी ही ज़रूरत है। अब तक इस पर ज़ोर रहा था कि गंभीर स्थिति में वेंटिलेटर ही काफ़ी महत्वपूर्ण होता है। फ़िलहाल, कोरोना मरीज़ों में किडनी फ़ेल होने के मामले काफ़ी ज़्यादा आ रहे हैं और अमेरिका किडनी की डायलिसिस मशीनों की कमी के गंभीर संकट का सामना कर रहा है।
किडनी ख़राब होने की स्थिति में डायलिसिस मशीन किडनी का काम करती है। किडनी की तरह ही यह ख़ून से टॉक्सिन यानी विषाक्त पदार्थों को साफ़ करती है। इसके साथ ही इलेक्ट्रोलाइट्स सहित ख़ून में मौजूद दूसरी जीचों को संतुलित करती है, रक्तचाप को नियंत्रित रखती है और अतिरिक्त तरल पदार्थ को हटाती है। जब तक किडनी ठीक न हो जाए तब तक डायलिसिस का उपयोग कुछ समय के लिए किया जाता है या फ़िर किडनी ख़राब होने की स्थिति में इसका इस्तेमाल लंबे समय तक किया जाता है।
हाल तक माना यह जा रहा था कि वायरस फेफड़े को प्रभावित करता है, न्यूमोनिया हो सकती है और साँस की गंभीर बीमारी भी हो सकती है। ऐसे में मरीज़ों को आईसीयू में रखने की ज़रूरत होती है। चीन में जब इस वायरस ने ज़ोर पकड़ा था तब से ही कोरोना के गंभीर मरीज़ों में किडनी फ़ेल होने की रिपोर्टें आ रही थीं। लेकिन तब उस पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया गया। जब इटली और यूरोप के दूसरे देशों तक मामला बढ़ा तब किडनी की डायलिसिस मशीनों की ज़रूरत ज़्यादा महसूस हुई। लेकिन अब असल संकट अमेरिका में दिख रहा है। एक समय इटली में जैसी स्थिति वेंटिलेटर की कमी से हो गई थी वैसी स्थिति अमेरिका में अब किडनी की डायलिसिस मशीनों की होती दिख रही है। इटली में तब डॉक्टरों के सामने यह चुनने की नौबत आ गई थी कि कोरोना के किस मरीज़ को वेंटिलेटर मुहैया कराया जाए और किसे मरने के लिए छोड़ दिया जाए। हालाँकि बाद में इटली ने बड़ी संख्या में वेंटिलेटर ख़रीदे और अब वैसी स्थिति नहीं है।
अमेरिका में किडनी की डायलिसिस मशीनों की कमी होने लगी है। अव्यवस्था फैलने लगी है और यह नौबत आ गई है कि किस मरीज़ को डायलिसिस की सुविधा मुहैया कराई जाए और किसे नहीं।
'न्यूयॉर्क टाइम्स' की एक रिपोर्ट के अनुसार, डॉक्टरों ने इस ख़तरे की घंटी की ओर इशारा किया है। उन्होंने कहा है कि कोरोना मरीज़ों की संख्या बढ़ने के साथ ही कोरोना के मरीज़ों में किडनी ख़राब होने के मामले काफ़ी ज़्यादा आ गए हैं और अब मशीनें तो कम पड़ ही रही हैं, इसको चलाने वाले प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मी भी कम पड़ रहे हैं।
अमेरिका में किडनी विशेषज्ञों का आकलन है कि अब तक जो आँकड़े आए हैं उसके विश्लेषण से पता चलता है कि जिन 5 फ़ीसदी लोगों को वेंटिलेटर की ज़रूरत पड़ती है उनमें से 20-40 फ़ीसदी मरीज़ों की किडनी फ़ेल हो रही है। येल यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ़ मेडिसिन के एक नेफ्रोलॉजिस्ट और अमेरिकन सोसायटी ऑफ़ नेफ्रोलॉजी के लिए कोरोना वायरस रिस्पॉन्स टीम के सह-अध्यक्ष डॉ. एलन क्लिगर ने यह बात कही है। आपको बता दें कि हर 100 में से जिन 20 मरीज़ों को हॉस्पिटल में भर्ती होने की ज़रूरत पड़ती है उनमें से क़रीब 5 फ़ीसदी मरीज़ों को ही वेंटिलेटर की ज़रूरत पड़ती है। क़रीब 80 फ़ीसदी कोरोना मरीज़ों को हॉस्पिटल में भर्ती होने की ज़रूरत नहीं पड़ती है।
डॉक्टरों के सामने एक उलझन यह भी है कि उन्हें अभी यह पता नहीं है कि क्या वायरस सीधे किडनी पर हमला करा रहा है या फिर कोरोना वायरस के कारण शरीर इतना कमज़ोर हो जा रहा है कि एक के बाद एक अंग फ़ेल हो रहे हैं और किडनी फ़ेल होना भी बस एक ऐसा ही मामला भर है। यह भी साफ़ नहीं है कि वायरस के कारण किडनी को स्थायी नुक़सान पहुँचता है या फिर तात्कालिक।
अब ऐसे में जब भारत में दूसरी ख़तरनाक बीमारियों के मरीज़ दुनिया में सबसे ज़्यादा हैं, कोरोना वायरस के मरीज़ों में किडनी से संबंधित दिक्कतें बढ़ सकती हैं। दुनिया में सबसे ज़्यादा डायबिटीज़ और दिल की बीमारी के मरीज़ भारत में ही हैं। डायबिटीज के 5 करोड़ मरीज हैं। डायबिटीज में ख़ून में मौजूद स्मॉल वैसेल ठीक से काम नहीं करते हैं और फिर किडनी ख़ून को सही तरीक़े से साफ़ नहीं कर पाती है। ऐसे में इसका किडनी पर भी असर होता है।
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