केरल में गुरुवार को 30 हज़ार से ज़्यादा कोरोना संक्रमण के केस आए। जून के बाद से लगातार मामले बढ़ते ही जा रहे हैं। तो क्या एक समय कोरोना नियंत्रण के लिए जिस केरल मॉडल की तारीफ़ हो रही थी वह 'टांय-टांय फिस्स' साबित नहीं हुआ?
केरल में 40 हज़ार से ज़्यादा ऐसे लोग कोरोना संक्रमित पाए गए हैं जिन्हें पूरी तरह से टीके लग गए थे। क्या यह वायरस अब वैक्सीन से मिली सुरक्षा को मात देने में सक्षम है?
केरल में कोरोना संक्रमण से निपटने के लिए जो किया जा रहा है उसकी आलोचना की जानी चाहिए या तारीफ़? वास्तव में क्या केरल में बेहद बुरे हालात हैं? क्या वहाँ दूसरे राज्यों की अपेक्षा ख़राब ढंग से निपटा जा रहा है?
केरल में कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ने पर शनिवार से दो दिन के लिए संपूर्ण लॉकडाउन रहेगा। राज्य के मुख्य सचिव डॉ. वीपी रॉय द्वारा जारी एक आधिकारिक आदेश में कहा गया है कि लॉकडाउन के दौरान कुछ मामलों में दी गई छूट जारी रहेगी।
केरल में बुधवार को 24 घंटे में कोरोना संक्रमण के 22 हज़ार से ज़्यादा मामले आए हैं। ये पूरे देश में हर रोज़ आ रहे मामलों के क़रीब 50 फ़ीसदी हैं। आख़िर वहाँ संक्रमण के मामले इतना ज़्यादा कैसे हैं?
केरल कोरोना संक्रमण से अभी भी जूझ रहा है और इस बीच अब इस साल पहली बार ज़ीका वायरस के संक्रमण का मामला सामने आया है। एक महिला में ज़ीका वायरस के संक्रमण की पुष्टि हुई है और 13 संदिग्ध लोगों के सैंपल जाँच के लिए भेजे गए हैं।
पूरे देश में कोरोना वायरस संक्रमण की स्थिति भले ही चिंताजनक नहीं दिखे, लेकिन महाराष्ट्र और केरल की स्थिति दूसरी कहानी बयाँ करती है। पिछले दो हफ़्ते से महाराष्ट्र में संक्रमण बढ़ता दिख रहा है।
देश में कोरोना संक्रमण का सबसे पहला मामला केरल में आया था और यही पहला राज्य था जिसने इस पर नियंत्रण भी पा लिया था, लेकिन अब वहाँ सामुदायिक संक्रमण का ख़तरा मंडराने लगा है। आख़िर ऐसी स्थिति क्यों हो गई?
देश में कोरोना वायरस का सबसे पहला पॉजिटिव मामला केरल में 30 जनवरी को आया था और अब वहाँ 7 मई को एक भी नया मामला नहीं आया है। तो यह चमत्कार कैसे हुआ? केरल ने कौन सा मॉडल अपनाया?