केरल में कोरोना की गंभीर स्थिति को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 11वीं की परीक्षा स्थगित कर दी है। राज्य सरकार ने वह परीक्षा ऑफ़लाइन कराने का फ़ैसला लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केरल में कोरोना की स्थिति ख़तरनाक है इसलिए इसने एक हफ़्ते तक परीक्षा को टाल दिया है। राज्य के हालात से चिंतित सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कम उम्र के बच्चों को कोरोना से संपर्क में आने का जोखिम नहीं उठाया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट का यह फ़ैसला तब आया है जब पिछले कई दिनों से केरल में लगातार 30 हज़ार से ज़्यादा मामले आ रहे हैं। गुरुवार को भी देश भर में आए कुल क़रीब 45 हज़ार मामलों में से 32 हज़ार से ज़्यादा तो अकेले केरल राज्य में आए हैं। राज्य में पॉजिटिविटी दर 18 फ़ीसदी से ज़्यादा है। राज्य में अब तक कुल मिलाकर 41 लाख से भी ज़्यादा मामले आ चुके हैं और 21 हज़ार से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है।
इन हालातों के बीच ही राज्य में कक्षा 11 की ऑफलाइन परीक्षा 6 सितंबर से शुरू होने वाली थी। सरकार के इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ केरल हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी। केरल हाई कोर्ट ने राज्य सरकार के ऑफ़लाइन परीक्षा आयोजित करने के प्रस्ताव में हस्तक्षेप नहीं करने का फ़ैसला किया था। इसके बाद इसको सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई करने वाली न्यायमूर्ति एएम खानविलकर, न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार की पीठ ने कहा, 'केरल में एक ख़तरनाक स्थिति है। देश में आ रहे मामलों के 70 प्रतिशत से अधिक मामले राज्य में आ रहे हैं, हर रोज़ क़रीब 35,000 मामले। कोमल उम्र के बच्चों को इसके संपर्क में आने का जोखिम नहीं उठाया जा सकता है।'
न्यायमूर्ति रॉय ने इस बात को रेखांकित किया कि केरल में सबसे अच्छे चिकित्सा बुनियादी ढांचों में से एक है। उन्होंने कहा, 'मैं केरल का मुख्य न्यायाधीश रहा हूँ और मैं कह सकता हूँ कि केरल में देश का सबसे अच्छा चिकित्सा ढांचा है। इसके बावजूद, केरल कोविड के मामलों को रोकने में सक्षम नहीं है।'
केरल में अनुपातिक रूप से ज़्यादा बुजुर्ग आबादी और 20 में से एक व्यक्ति मधुमेह के रोगी होने के बावजूद इसकी मज़बूत स्वास्थ्य प्रणाली बहुत कम मृत्यु दर सुनिश्चित करने में सक्षम रही। यही कारण है कि राष्ट्रीय स्तर पर 1.3 से अधिक की तुलना में केरल में मृत्यु दर सिर्फ़ 0.5 है।
सुप्रीम कोर्ट का परीक्षा टालने को लेकर यह फ़ैसला इसलिए भी अहम है कि देश में 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को अभी तक टीके लगने शुरू नहीं हुए हैं। हालाँकि, जायडस कैडिला के टीके के आपात इस्तेमाल को मंजूरी मिल गई है, और कई और टीके पर ट्रायल चल रहा है। पिछले हफ्ते सरकार के कोविड पैनल के प्रमुख डॉ. एनके अरोड़ा ने कहा कि जायडस कैडिला का टीका 12 से 17 साल के बच्चों के लिए अक्टूबर में शुरू किया जाएगा। दिल्ली एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया कह चुके हैं कि देश में सभी बच्चों को टीके लगाने में क़रीब 9 महीने लगेंगे।
अब जब आशंका है कि यदि तीसरी लहर आएगी तो इसमें बच्चे ज़्यादा चपेट में आएँगे, सुप्रीम कोर्ट का यह फ़ैसला काफ़ी अहम है।
केंद्र सरकार की खिंचाई
इधर एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना से मारे गए लोगों के प्रमाण पत्र के नियम नहीं बनाने के लिए केंद्र सरकार की खिंचाई की है। समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, कोरोना से जान गँवाने वालों के परिवारों को मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने के लिए दिशानिर्देश तैयार करने में देरी पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को नाराज़गी जताई। न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की दो सदस्यीय पीठ ने केंद्र सरकार को 11 सितंबर तक अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया।
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