देश में कोरोना संक्रमण का सबसे पहला मामला केरल में आया था और यही पहला राज्य था जिसने इस पर काफ़ी हद तक नियंत्रण भी पा लिया था, लेकिन अब वहाँ सामुदायिक संक्रमण का ख़तरा मंडराने लगा है। आख़िर जिस राज्य में कई दिनों तक एक भी पॉजिटिव केस नहीं आया था वह राज्य इतनी गंभीर स्थिति में पहुँचने की ओर अग्रसर कैसे हो गया?
दरअसल, यह स्थिति पिछले 20 दिनों में बदली है। जब देश भर में प्रवासी मज़दूर दूसरे राज्यों से अपने-अपने राज्यों की ओर लौटे तो कई राज्यों में संक्रमण के मामले बढ़ गए। उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा जैसे राज्यों में संक्रमण के मामले एकाएक तेज़ी से बढ़े। यही स्थिति केरल में भी हुई। माना जा रहा है कि महाराष्ट्र और तमिलनाडु से जब प्रवासी मज़दूर केरल में लौटे तो राज्य में एकाएक कोरोना संक्रमण के मामले तेज़ी से बढ़ गए। गुरुवार को ही 84 नये मामले आए। इसके साथ ही राज्य में संक्रमण के कुल मामले 1088 हो गए। जहाँ 30 जनवरी से लेकर 8 मई तक सिर्फ़ 503 मामले थे वहीं अब 20 दिन में यह संख्या दोगुनी हो गई है।
राज्य में इतनी तेज़ी से मामले बढ़ने पर ही राज्य के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन ने कहा है कि राज्य अब संक्रमण के कम्युनिटी यानी सामुदायिक स्तर पर फैलने के ख़तरे से जूझ रहा है। हालाँकि उन्होंने साफ़ किया कि अभी सामुदायिक स्तर पर यह नहीं फैला है।
समीक्षा बैठक के बाद मुख्यमंत्री ने कहा, 'पॉजिटिव मामलों की संख्या में वृद्धि हुई है। लेकिन, उनमें से ज़्यादातर बाहर से आए हैं और केरल में उनके संपर्कों में आने से संक्रमित हुए हैं।' उन्होंने कहा कि एक सकारात्मक संकेत है कि हम अभी भी संक्रमण को फैलने से रोक सकते हैं।
कई रिपोर्टों में यह कहा गया है कि राज्य में बाहर के राज्यों से आने वाले लोगों के साथ विदेशों से लाए गए भारतीयों के लौटने से केरल में पॉजिटिव मामले बढ़े हैं।
केरल सरकार सामुदायिक स्तर पर संक्रमण के फैलने से रोकने के लिए टेस्ट को बढ़ा रही है। कहा जा रहा है कि पहले सरकार इमरजेंसी स्थिति से निपटने के लिए टेस्ट किट बचा कर रख रही थी। 'द इंडियन एक्सप्रेस' के अनुसार और यही कारण है कि 2 मई तक जहाँ सिर्फ़ 31 हज़ार 183 लोगों के सैंपल लिए थे वहीं 28 मई तक 60 हज़ार 685 लिए जा चुके हैं।
केरल ने अब तक स्थिति को काफ़ी बेहतर तरीक़े से नियंत्रित किया है। इसके लिए उसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तारीफ़ भी हो चुकी है। ऐसा इसलिए था कि देश में कोरोना वायरस का सबसे पहला पॉजिटिव मामला केरल में 30 जनवरी को आया था और वहाँ 7 मई को एक भी नया मामला नहीं आया था। राज्य ने इसके लिए ज़बरदस्त तैयारी की थी।
जब संक्रमण फैलने का ख़तरा था उससे पहले ही राज्य के हज़ारों स्वास्थ्य कर्मियों और वॉलिंटियरों को मैप और फ़्लोचार्ट मुहैया करा दिया गया था जिससे कि आक्रामक तरीक़े से कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग की जा सके और स्थिति को नियंत्रित किया जा सके। यहाँ तक कि छात्रों को भी कियोस्क सेंटर पर लगाया जिससे जाँच सैंपल की प्रक्रिया को आसान बनाया जा सके।
ऐसे में इसने विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ का नुस्खा अपनाया। यह नुस्खा चार बिंदुओं पर केंद्रित है- टेस्ट करो, ट्रेस करो, आइसोलेट करो और इलाज करो। सरकार का यह नुस्खा काम कर रहा था।
लेकिन सवाल है कि अब इस ताज़ा ख़तरे से राज्य सरकार कैसे निपटेगी? क्या अब तक के रिकॉर्ड की तरह वह स्थिति पर नियंत्रण कर पाएगी?
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