बेरोजगारी पर इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन और इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन डेवलपमेंट की विस्फोटक साझा रिपोर्ट ने आगामी आम बजट में केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण की चुनौतियां बढ़ा दी हैं। इंडिया एंप्लाॅयमेंट रिपोर्ट 2024 के अनुसार भारत में पढ़ी लिखी युवा आबादी में 65.7 प्रतिशत लोग बेरोजगार हैं। इससे देश में उपलब्ध जवान लोगों के उत्पादक लाभ के जबरदस्त आर्थिक घाटे में बदल चुकने और सामाजिक असंतोष पनपने का ख़तरा बढ़ने के आसार दिख रहे हैं। इससे साफ़ है कि 23 जुलाई को वित्तमंत्री जो बजट पेश करेंगी उसमें रोजगार के लाखों मौके पैदा करने होंगे। सर्वव्यापी बेरोजगारी के गहरे दंश को लगातार बढ़ती महंगाई और अधिक तकलीफदेह बना रही है। इसलिए 23 जुलाई को पेश होने वाले बजट में केंद्र की एनडीए सरकार के अंधाधुंध निजीकरण और उदार श्रम नीतियों पर फिलहाल लगाम कसे जाने और सार्वजनिक खर्च बढ़ा कर रोजगार के मौक़े पैदा करने की युवा वर्ग बेसब्री से बाट जोह रहा है।
साल 2024 के आम चुनाव में बीजेपी की निर्णायक हार के बावजूद एनडीए की बैसाखी से लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बने नरेंद्र मोदी के पूंजीपति प्रेम में हालांकि कोई बदलाव नहीं झलक रहा है। फिर भी चुनाव में बीजेपी के 240 लोकसभा सीटों पर अटकने के बाद एनडीए सरकार बनते ही सीतारमण को खाने-पीने और अन्य ज़रूरी वस्तुओं पर जीएसटी की दरों में कतर-ब्योंत तो करनी पड़ी है। इसके बावजूद उत्पादन एवं वितरण प्रणालियों में पिछले दस साल में मुनाफाखोरों के बढ़े बोलबाले ने उसके लाभ को आम आदमी तक नहीं पहुँचने दिया। इसलिए बजट में उत्पादन एवं वितरण प्रणाली में बिचैलियों की चैधराहट घटाने के ठोस उपाय वांछित हैं।
मतदाता ने देश के सबसे बड़े चार राज्यों- उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में बीजेपी और एनडीए में उसके सहयोगी दलों को करारी मात दी है। इसके साथ ही हरियाणा में मतदाता ने बीजेपी को राज्य की आधी यानी पांच सीट हराकर उसे तगड़ा सबक सिखाया है। गौरतलब है कि हरियाणा में पिछले दस साल से बीजेपी की ही सरकार है और वहां देश में बेरोजगारी की दर सबसे अधिक लगभग 35 फीसदी है।
अफसोस यह कि तमाम बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मुख्यालय वाले गुरूग्राम शहर वाले राज्य हरियाणा में बीजेपी सरकार ने 75 फीसदी रोजगार स्थानीय आबादी के लिए आरक्षित करने का नियम बना कर युवाओं को भरमाने की कोशिश की। उसकी पाल तब खुली जब सरकार रोजगार के नए मौक़े पैदा करने में नाकाम रही और फिर अदालत ने नौकरियों में 75 फीसदी स्थानीय आरक्षण को भी रद्द कर दिया।
मोदी ने साल 2014 के चुनाव घोषणा पत्र में रोजगार के सालाना दो करोड़ नए अवसर पैदा करने का वायदा किया था। जिसे पूरा करने में उनकी नाकामी का आईना मतदाताओं ने बीजेपी को 2024 के आम चुनाव में सामान्य बहुमत से भी वंचित करके बखूबी दिखाया है।
देश में ओडिशा, मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और हरियाणा में बेरोजगारी अत्यधिक है। इनमें से पांच राज्यों में बीजेपी अथवा एनडीए की सरकार है। इनमें बीजेपी शासित छत्तीसगढ़ समेत कुछ राज्यों में रोजगार बढ़ने की दर पिछले कुछ वर्ष में संकुचित हो रही है। इसके लिए रिपोर्ट में राज्य सरकारों की नीतियों में कमी इंगित की गई है।
दूसरी तरफ आरबीआई यानी भारतीय रिजर्व बैंक ने पिछले साल देश में 4.7 करोड़ नौकरियां बढ़ने का दावा करके सबको चैंका दिया है। आरबीआई की वेबसाइट पर नमूदार इस रिसर्च में भारत की अर्थव्यवस्था से जुड़े 27 प्रमुख उद्योगों के हवाले से रोजगार के नए मौके पैदा होने का रहस्योद्घाटन किया गया है। ताज्जुब ये कि आरबीआई करोड़ों नए रोजगार के ये आंकड़े बीजेपी को बेरोजगारी और महंगाई के लिए मतदाताओं द्वारा निर्णायक दंड देने के बाद जारी कर रहा है। क्या इसे आगामी विधानसभा चुनावों में प्रधानमंत्री मोदी की छवि को फिर से चमकाने का प्रयास माना जाए! इन आंकड़ों के अनुसार वित्तीय सेवाओं, कृषि, व्यापार सहित 27 उद्योगों में पिछले वित्त वर्ष 2023-24 में 4.7 करोड़ नौकरियां बढ़ी हैं। इससे लगभग छह फीसद अधिक लोगों को रोजगार मिला मगर लगातार हो रही छंटनी के कारण देश में बेरोजगारों की संख्या नहीं घट पाई।
रिसर्च के अनुसार मार्च, 2023 के अंत में 27 क्षेत्रों में नियोजित लोगों की संख्या 59.67 करोड़ थी जो मार्च 2024 में बढ़कर 64.33 करोड़ आंकी गई। उद्योग स्तर पर उत्पादकता मापन - भारत केएलईएमएस आंकड़े शीर्षक के तहत प्रकाशित आरबीआई की इस जानकारी के अनुसार देश में कुल रोजगारों की संख्या 2019-20 में 53.44 करोड़ थी। उससे अगले पांच वर्ष में बढ़कर यह संख्या 64.33 करोड़ हो गई। इसके अनुसार वित्त वर्ष 2022-23 में सबसे ज़्यादा कृषि, मछली-पालन क्षेत्र में 25.3 करोड़ लोगों को काम मिला जबकि वित्त वर्ष 2021-22 में 24.82 करोड़ लोगों को ही इस क्षेत्र में काम मिल पाया था।
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