दिल्ली नगर निगम के चुनाव अप्रैल 2022 में होने थे लेकिन चुनाव से ठीक पहले बीजेपी को यह अहसास हो गया था कि 15 साल से काबिज नगर निगम में उसके पांव उखड़ रहे हैं। इसलिए सबसे पहले तो चुनाव को टालना जरूरी था, वही किया गया। आर्थिक रूप से जर्जर तीन नगर निगमों को मिलाकर एक करने की मुहिम शुरू हुई और फिर परिसीमन का झुनझुना बजाते हुए आखिर दिसंबर में नगर निगम के चुनाव कराए गए। बीजेपी की हार फिर भी नहीं टल सकी और आम आदमी पार्टी ने विधानसभा के बाद इस छोटी सरकार में भी सत्ता हासिल कर ली। हालांकि नतीजे विधानसभा जैसे नहीं रहे और 250 में से 220 सीटें जीतने की केजरीवाल की भविष्यवाणी गुजरात की तरह दिल्ली नगर निगम में भी बुरी तरह पिट गई। मगर, फिर भी 134 सीटें जीतकर आम आदमी पार्टी ने 15 साल से जमी बीजेपी को जमीं पर ला खड़ा किया।
होना तो यह चाहिए था कि इसके बाद आसानी से सत्ता हस्तांतरण हो जाता, जैसाकि आमतौर पर हुआ करता है लेकिन बीजेपी इस हार से इतनी आहत और तिलमिलाई हुई है कि वह इसे हार के रूप में स्वीकार ही नहीं कर रही। बीजेपी ने उपराज्यपाल की मार्फत दो बड़ी चालें चलीं। पहली तो यह कि पीठासीन अधिकारी बीजेपी की ही पूर्व मेयर सत्या शर्मा को नियुक्त करा दिया गया। खैर, इसमें चालाकी तो थी जो बाद में साबित भी हुई लेकिन यह असंवैधानिक नहीं था। दिल्ली सरकार ने खुद जो पांच नाम उपराज्यपाल को भेजे थे, उसमें सत्या शर्मा का नाम भी था। इसके बाद दस एल्डरमैन की नियुक्ति में जो पैंतरा चला गया, उसने भी बीजेपी को दुनिया के सामने शर्मसार ही किया। आमतौर पर एल्डरमैन की नियुक्ति में इतनी जल्दबाजी कभी नहीं की गई। बीजेपी ने ऐसा इसलिए किया कि वह मेयर और डिप्टी मेयर के चुनाव में एल्डरमैन से भी वोट कराना चाहती थी। हालांकि उससे कोई फर्क पड़ने वाला नहीं था।
आम आदमी पार्टी के पास 150 का आंकड़ा था तो बीजेपी के पास 113 का। इस तरह 10 एल्डरमैन जुड़कर भी अंतर नहीं पाट सकते थे। मगर, बीजेपी की नजर स्टैंडिंग कमेटी पर थी जोकि एमसीडी का पावर सेंटर माना जाता है। बीजेपी नगर निगम में जनता के हाथों हारकर भी असली सत्ता अपने हाथों से जाने नहीं देना चाहती। अगर मेयर, डिप्टी मेयर के चुनाव में एल्डरमैन वोट डाल देते तो फिर स्टैंडिंग कमेटी के सदस्यों के चुनाव उनका वोट का हक बन जाता। सदन से चुने जाने वाले 6 सदस्यों में से 3 आसानी से बीजेपी के पक्ष में चले जाते।
आम आदमी पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट से जो राहत ली, उसकी वह हकदार थी। इसीलिए मेयर और डिप्टी मेयर के चुनावों में आम आदमी की जीत कानून सम्मत भी मानी गई लेकिन उसके बाद आम आदमी पार्टी ने जो चरित्र दिखाया, उससे वह बीजेपी से भिन्न नहीं रही। उसने भी नैतिकता और कानून को ताक पर रखकर स्टैंडिंग कमेटी के चुनाव में अपने आपको पूरी तरह एक्सपोज कर दिया।
यह सच है कि उपराज्यपाल ने 10 एल्डरमैन की नियुक्ति में बीजेपी का पलड़ा भारी कर दिया और 12 में से 3 जोन में बीजेपी को पिछड़ने के बावजूद बहुंमत की स्थिति में ला खड़ा किया है। चार जोन शाहदरा, उत्तरी, शाहदरा दक्षिण, नजफगढ़ और केशवपुरम में पहले ही बीजेपी बहुमत में थी। अब सेंट्रल, नरेला और सिविल लाइंस जोन में बीजेपी एल्डरमैन और दूसरे जुगाड़ से बहुमत की स्थिति में है। एमसीडी के सभी जोन से स्टैंडिंग कमेटी के लिए एक-एक सदस्य चुना जाता है। इस तरह सात जोन और सदन के 6 सदस्यों में से 3 जीतकर बीजेपी स्टैंडिंग कमेटी में बहुमत चाहती है ताकि स्टैंडिंग कमेटी में चेयरमैन बीजेपी का ही चुना जाए। बीजेपी को लाभ पहुंचाने के लिए उपराज्यपाल ने कांग्रेस के एक पार्षद को हज कमेटी में भी मनोनीत कर दिया ताकि कांग्रेस भी इस खेल में बीजेपी का साथ दे और यह होना भी है। यह सारी रणनीति बेइमानी तो कही जा सकती है लेकिन गैरकानूनी नहीं।
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बीजेपी चुनाव में हारकर भी अगर स्टैंडिंग कमेटी पर काबिज हो जाए तो इसे अनैतिक तो जरूर कहा जाएगा लेकिन आम आदमी पार्टी की परेशानी यह है कि वह इसे रोक नहीं सकती और न ही किसी अदालत में चुनौती दे सकती है।
पिछली बार 2017 में नगर निगम में बीजेपी जीती थी लेकिन एल्डरमैन बनाने का अधिकार दिल्ली सरकार के पास था तो उन्होंने तीनों एमसीडी में अपनी पार्टी के ही कार्यकर्ताओं को मनोनीत किया था। इस तरह उसके पार्षदों की संख्या बढ़ गई थी और उसके उम्मीद से ज्यादा सदस्य स्टैंडिंग कमेटी में चुनकर आए थे। इसलिए इस बार इस बेइमानी को उन्हें भी स्वीकार करना ही पड़ेगा।
पिछली बार 2017 में नगर निगम में बीजेपी जीती थी लेकिन एल्डरमैन बनाने का अधिकार दिल्ली सरकार के पास था तो उन्होंने तीनों एमसीडी में अपनी पार्टी के ही कार्यकर्ताओं को मनोनीत किया था। इस तरह उसके पार्षदों की संख्या बढ़ गई थी और उसके उम्मीद से ज्यादा सदस्य स्टैंडिंग कमेटी में चुनकर आए थे। इसलिए इस बार इस बेइमानी को उन्हें भी स्वीकार करना ही पड़ेगा।
अब सवाल यह है कि सदन में मेयर और डिप्टी मेयर के चुनाव के बाद आम आदमी पार्टी जिस तरह स्टैंडिंग कमेटी को रोकने की कोशिश कर रही है तो क्या वह उसी भूमिका में नहीं आ गई, जिस भूमिका के लिए वह खुद बीजेपी को कोस रही थी। बीजेपी मेयर और डिप्टी मेयर का चुनाव टालने की बेशर्म कोशिश इसलिए कर रही थी कि उसे पता था कि जैसे ही मेयर, डिप्टी मेयर चुने जाएंगे, आम आदमी पार्टी स्टैंडिंग कमेटी के चुनाव को रोकने की कोशिश करेगी। इसलिए सुप्रीम कोर्ट से मेयर के चुनाव का फरमान आते ही बीजेपी ने सीएम केजरीवाल से यह आश्वासन मांगा था कि स्टैंडिंग कमेटी का चुनाव रोका जा नहीं जाएगा। अगर मेयर का चुनाव बीजेपी नहीं कराना चाहती थी तो आम आदमी पार्टी हार के डर से अब स्टैंडिंग कमेटी के चुनाव में उसी तरह की हरकत कर रही है।
बात यहीं खत्म नहीं होती। चुनाव को टालने के लिए और हंगामा करने के लिए बीजेपी पर जिस तरह के आरोप लगे हैं, वही आरोप आम आदमी पार्टी पर लगाने से कोई कैसे रोक सकता है। क्या यह साफ नहीं देखा गया कि आतिशी ने किस तरह अपनी पार्षदों को बीजेपी पार्षदों पर हमला करने का निर्देश दिया। मेयर के चुनाव की पहली मीटिंग में भी आम आदमी पार्टी के स्टार नेता इसी तरह के निर्देश देते साफ नजर आए थे। अगर वे बीजेपी के हंगामे को गुंडागर्दी कहते हैं तो फिर आम आदमी पार्टी के नेताओं के इस व्यवहार को क्या कहा जाएगा?
हालांकि अब मामला हाईकोर्ट में है और हाईकोर्ट ने स्टैंडिंग कमेटी के फिर से चुनाव कराने के मेयर शैली ओबेरॉय पर स्टे जारी कर दिया है लेकिन नई मेयर ने उपराज्यपाल द्वारा नियुक्त सत्या शर्मा की ही तरह जिस तरह का ‘हठ’ स्टैंडिंग कमेटी के चुनाव में दिखाया है, वह कौन-सी रूल बुक में लिखा है, कोई नहीं जानता। निगम अधिकारियों और चुनाव आयोग के तकनीकी अधिकारियों द्वारा तैयार नतीजों को यह कहकर झुठला दिया कि मैं इसे नहीं मानती और दोबारा वोटिंग कराऊंगी।
स्टैंडिंग कमेटी में कब्जा करने के लिए आम आदमी पार्टी का एक पार्षद उसी सुबह जब बीजेपी में चला गया तो आप नेता यह कहते सुनाई पड़े कि ऐसा कहीं नहीं देखा कि कोई पार्टी दूसरी पार्टी के पार्षदों को तोड़ने का अपवित्र काम करे और फिर उसे कारनामे के रूप में पेश करे। शाम को आप के वही नेता यह कहते ताल ठोकते नजर आए कि हमने बीजेपी के पांच पार्षद तोड़ लिए और स्टैंडिंग कमेटी चुनाव में उन्होंने आप के लिए वोट डाले। अगर बीजेपी का वह काम अपवित्र था तो फिर आप के लिए कैसे पवित्र हो गया।
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