मुसलमानों के तुष्टीकरण का आरोप झेल रही पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस बार केवल 42 मुसलिम उम्मीदवार उतारे हैं जबकि 2016 में उन्होंने 57 मुसलमानों को पार्टी का टिकट दिया था। एक ऐसे समय में जब इंडियन सेक्युलर फ़्रंट नामक एक नई पार्टी मुसलमानों के वोटों में सेंध लगाने की तैयारी कर रही है, ममता का अल्पसंख्यक समुदाय से कम उम्मीदवारों को उतारना क्या पार्टी के लिए घातक नहीं होगा? अगर हाँ, तो वे ऐसी ग़लती क्यों कर रही हैं? आइए, नीचे ममता बनर्जी और उनके चाणक्य प्रशांत किशोर की रणनीति को समझने की कोशिश करते हैं।