किसी भी चुनाव में सरकारी कर्मचारियों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है क्योंकि चुनाव कराने का सारा दारोमदार उन्हीं पर होता है। बहुत बड़े पैमाने पर चुनावी गड़बड़ियाँ संभव न भी हो मगर छोटे-छोटे स्तरों पर सरकारी कर्मचारी चुनाव को प्रभावित करने की ताक़त रखते हैं मसलन, वोटर आईडी के बिना ही किसी को फ़र्ज़ी मतदान करने देना। इसीलिए विपक्ष को हमेशा यह आशंका रहती है कि सत्तारूढ़ दल स्थानीय प्रशासन यानी सरकारी कर्मचारियों की मदद से परिणाम को प्रभावित करने की कोशिश करेगा।यही स्थिति बंगाल की भी है जहाँ अगले अप्रैल में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। यहाँ तृणमूल 10 साल से सत्ता में है और अब तीसरी बार सत्ता में आने की कोशिश कर रही है। तृणमूल ने 2016 का चुनाव बहुत आसानी से जीत लिया था। उसे तब 294 की विधानसभा में 200 से ज़्यादा सीटें मिली थीं। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में उसे बीजेपी से कड़ा संघर्ष करना पड़ा था। दोनों दलों के बीच अंतर केवल 4 सीटों और 3% वोट का था। फ़िलहाल जो ओपिनियन पोल आए हैं, उनमें तृणमूल कांग्रेस कुछ आगे चल रही है लेकिन फिर भी मुक़ाबला काँटे का ही माना जा रहा है।
बंगाल: अधिकतर सरकारी कर्मचारी ममता के ख़िलाफ़ क्यों?
- पश्चिम बंगाल
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- नीरेंद्र नागर
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- 15 Feb, 2021
पश्चिम बंगाल में शीघ्र ही विधानसभा चुनाव है। ओपिनियन पोल तृणमूल को बढ़त दिखा रहे हैं तो तृणमूल से एक के बाद एक नेताओं के छोड़कर बीजेपी में शामिल होने से कई तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं। ऐसे में सरकारी कर्मचारियों के वोट डालने का पैटर्न चुनावी गणित को समझने में मदद कर सकता है। जानिए, यह पैटर्न क्या देता है संकेत...
