बुद्धिजीवियों के लिए मशहूर और भद्र लोक बंगाली के लिए परिचित राज्य की राजनीति अब बदल गई है। जिस राज्य में नीतियों पर चुनाव प्रचार होता था धर्म और जाति की बात कोई सार्वजनिक मंच तो क्या आपसी और निजी बातचीत में भी नहीं करता था, वहाँ अब पहचान की राजनीति इतनी गहरी हो गई है कि धर्म और जाति ही नहीं, गोत्र तक की दुहाई दी जा रही है।