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ईसा मसीह, गुड फ्राइडे के बाद क्या मोदी क़र्बला, हसन, हुसैन की बात करेंगे?

पूरे देश में 'जय श्री राम' का नारा लगा कर और हिन्दुत्व के ज़रिए राजनीतिक समीकरण को उलट-पुलट कर रख देने वाली बीजेपी ने जब केरल में ईसा मसीह का नाम लेकर अपने विरोधी पर हमला किया तो लोगों का ध्यान उस ओर गया। यह लगभग उसी समय हुआ जब बीजेपी के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की शिकायत पर बीजेपी-शासित मध्य प्रदेश में चार ईसाई भिक्षुणियों (ननों) को धर्मान्तरण का आरोप लगा कर चलती ट्रेन से उतार लिया गया था। 

मामला क्या है?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केरल में चुनाव प्रचार करते हुए मुख्यमंत्री पिनराइ विजयन और सत्तारूढ़ लेफ़्ट डेमोक्रेटिक फ़्रंट (एलडीएफ़) पर ज़ोरदार हमला बोलते हुए ईसाई धर्म के संस्थापक और ईश्वर का दूत समझे जाने वाले ईसा मसीह का नाम लिया। उन्होंने कहा, "जूडास ने चाँदी के कुछ टुकड़ों के लिए प्रभु ईसा मसीह के साथ विश्वासघात किया। एलडीएफ़ ने सोने के कुछ टुकड़ों के लिए केरल के लोगों के साथ विश्वासघात किया।" 

वह केरल में हुए कथित सोना तस्करी के बारे में बात कर रहे थे और एलडीएफ़ व मुख्यमंत्री को निशाने पर ले रहे थे। 

ख़ास ख़बरें

कौन था जूदास?

बता दें कि ईसाई मत के अनुसार, जूदास एस्केरियात ईसा मसीह के शुरुआती 12 शिष्यों में एक था, उनके काफी नज़दीक था। लेकिन उसने ईसा के साथ विश्वासघात किया और जब उन्हें पकड़ने रोमन साम्राज्य के सैनिक आए तो उसने ईसा मसीह का मुँह चूम कर उन्हें उनकी पहचान बता दी। इसके बदले उसे चाँदी के 30 सिक्के मिले थे। 

नरेंद्र मोदी के कहने का अर्थ यह था कि इसी तरह केरल के मुख्यमंत्री ने सोने के कुछ टुकड़ों के लिए राज्य के लोगों के साथ विश्वासघात किया।

उनका भाषण पूरी तरह राजनीतिक था, धार्मिक नहीं। लेकिन उन्होंने जिस तरह ईसाई धर्म के प्रतीक का इस्तेमाल किया, वह चर्चा में ज़रूर है। 

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इस पेंटिग में ईसा मसीह का मुँह चूम रहा है जूदास एस्केरियात

ईसाइयों पर नज़र

प्रधानमंत्री ने यह सब तब किया ईसाई समुदाय का पवित्र त्योहार गुड फ्राइडे और ईस्टर नज़दीक था। गुडा फ्राइडे वह दिन है, जिस दिन ईसाई धर्म के संस्थापक को रोमन साम्राज्य ने सलीब पर चढ़ा दिया था। ईसाई मत के अनुसार वे उसके दो दिन बाद यानी रविवार को जीवित हो उठे और सशरीर स्वर्ग चले गए। इस दिन को ईसाई समुदाय ईस्टर त्योहार के रूप में मनाता है। 

प्रधानमंत्री यहीं नहीं रुके। उन्होंने गुड फ्राइडे पर ट्वीट कर कहा कि यह त्योहार ईसा मसीह के संघर्ष और त्याग की याद दिलाता है। 

केरल में ईसाइयों की तादाद 61.4 लाख है और वे जनसंख्या के लगभग 18.4 प्रतिशत हैं। ये कासरगोड, कन्नूर, पलक्काड, कोझीकोड, त्रिशूर, एर्नाकुलम, इडुक्की, कोट्टायम, अलपुज़ा, कोल्लम ज़िलों में चुनाव प्रभावित करने की स्थिति में हैं।

ईसाइयों के ख़िलाफ़ हेट क्राइम!

यह साफ़ है कि प्रधानमंत्री ईसाई धर्म के प्रतीकों का इस्तेमाल कर ईसाई वोटरों के पास पहुँचना चाहते हैं, उन्हें वे इस माध्यम से अपील करने की कोशिश कर रहे हैं। 

बता दें कि आँकड़ों के अनुसार, ईसाइयों के ख़िलाफ़ 2019 में 527 हेट क्राइम यानी नफ़रत की वजह से किए गए अपराध की वारदात हुईं, जिसमें से 109 उत्तर प्रदेश में हुईं, जहाँ बीजेपी की सरकार है और योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री हैं। 

इसके अलावा तमिलनाडु में 75, कर्नाटक में 32, महाराष्ट्र में 31 और बिहार में 30 वारदातों में ईसाइयों को निशाने पर लिया गया। 

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धर्मान्तरण का आरोप लगा कर झांसी में चार ईसाई ननों को ट्रेन से उतार लिया गया

निशाने पर रहे हैं ईसाई!

नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री के बाद अटल बिहारी वाजपेयी के जन्म दिन यानी 25 दिसंबर को गुड गर्वनेंस के रूप में मनाने का एलान किया था और कहा था कि तमाम सरकारी दफ़्तरों में सभी कर्मचारी आएंगे और इसे मनाएंगे। ईसाइयों का सबसे बड़ा त्योहार क्रिसमस 25 दिसंबर को ही होता है। इसका चौतरफा विरोध होने के बाद सरकार ने इस आदेश को वापस ले लिया। 

दक्षिण में ईसा, शेष देश में राम!

यह सब ऐसे समय हो रहा है जब पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के ठीक पहले बीजेपी ने 'जय श्री राम' के नारे को बहुत ही आक्रामक ढंग से उठाया और उसे स्थापित करने की कोशिश की। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंति के मौके पर सरकारी कार्यक्रम में जब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बोलने के लिए खड़ी हुईं तो बीजेपी के लोगों ने यह नारा लगा कर उन्हें बोलने से रोका। ममता बनर्जी बग़ैर भाषण दिए ही चली गईं। वहाँ मौजूद नरेंद्र मोदी ने न तो इसे रोकने की कोशिश की, न अपने समर्थकों को रोका न ही ममता बनर्जी से भाषण देने का आग्रह किया। 

पूरे देश में 'जय श्री राम' का नारा उछालने वाले नरेंद्र मोदी केरल में 18 प्रतिशत ईसाइयों को खुश करने के लिए ईसा मसीह का नाम लेते हैं, ईसाई प्रतीकों का राजनीतिक इस्तेमाल करते हैं और गुड फ़्राइडे पर ईसा के त्याग को याद करते हैं।

क्या मोदी क़र्बला को भी याद करेंगे?

अब सवाल यह उठता है कि क्या नरेंद्र मोदी और बीजेपी के लोग मुसलमानों तक पहुँचने के लिए किसी दिन क़र्बला को याद करेंगे और उसमें शहीद हुए हसन व हुसैन की तारीफ करेंगे, इसलाम धर्म के प्रतीकों का राजनीतिक इस्तेमाल करेंगे।

बता दें कि कर्बला की लड़ाई 10 अक्टूबर 860 को वर्तमान इराक़ के शहर क़र्बला में उम्मैयद ख़लीफ़ा यज़ीद और पैगंबर मुहम्मद के नाती हसन व हुसैन की बहुत ही छोटी सेना के बीच लड़ाई हुई थी। यज़ीद ने ख़ुद को ख़लीफ़ा घोषित कर दिया था और व हसन व हुसैन से अधीनता स्वीकार करने व उसे ख़लीफ़ा मानने को कहा था। हसन व हुसैन ने इससे इनकार कर दिया था। इस लड़ाई हसन, हुसैन और उनके साथ के सभी लोग मारे गए थे। 

मुसलमान उस दिन शोक मनाते हैं। 

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अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के पहले भूमि पूजन करते हुए नरेंद्र मोदी

बीजेपी की हिन्दुत्व की राजनीति ही मुसलिम-विरोध पर टिकी हुई है, वह मुसलमानों के तुष्टीकरण की बात करती है, हिन्दुओं के साथ भेदभाव होने की बात करती है, हिन्दुओं के ख़तरे में पड़ने की बात करती है।

लेकिन जम्मू-कश्मीर जैसे राज्य में मुसलमान बहुसंख्यक तो हैं ही, वे पश्चिम बंगाल, केरल जैसे राज्यों में चुनाव नतीजों को प्रभावित करने की स्थिति में हैं। पश्चिम बंगाल में मुसलमानों की तादाद लगभग 29 प्रतिशत है और वे लगभग 100 सीटों पर चुनाव नतीजे प्रभावित कर सकते हैं। वहाँ अभी छह चरणों का मतदान बाकी है। 

 तो क्या नरेंद्र मोदी अब मुसलमानों तक पहुँचने के लिए क़र्बला को याद करेंगे?

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प्रमोद मल्लिक
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