अभी पूरी दुनिया में विद्यार्थी ख़बर में हैं। बेहतर यह कहना होगा कि वे ख़बर बना रहे हैं। अमेरिका के 100 से ज़्यादा विश्वविद्यालयों में छात्र अपनी सरकार के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। यह विरोध उनकी सरकार द्वारा इस्राइल को दी जा रही मदद और समर्थन के ख़िलाफ़ है जिसके बल पर वह फ़िलिस्तीनी लोगों का जनसंहार कर रहा है। वे अपने संस्थानों से भी माँग कर रहे हैं कि वे इस्राइल के साथ अपना हर तरह का रिश्ता तोड़ें। यह विरोध इस्राइल पर फ़िलिस्तीनी लोगों की नस्लकुशी रोकने के लिए दबाव डालने के लिए किया जा रहा है। उनके संस्थानों के प्रशासन और उनकी सरकार ने उनकी माँग का जवाब अभूतपूर्व दमन से दिया है। शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे विद्यार्थियों पर प्लास्टिक की गोली, आँसू गैस, लाठियों का इस्तेमाल किया गया है। उन्हें बड़ी संख्या में गिरफ़्तार किया गया है। उनमें से अनेक को संस्थानों से निकाल बाहर करने का नोटिस दिया गया है। उनका साथ देनेवाले अध्यापकों को भी पीटा गया है, गिरफ़्तार किया गया है और दूसरे तरीक़ों से दंडित किया जा रहा है।
अमेरिकी विश्वविद्यालयों में प्रदर्शन, भारत के परिसर ख़ामोश क्यों?
- वक़्त-बेवक़्त
- |
- |
- 6 May, 2024

अमेरिका के परिसरों के साथ यूरोप और दूसरे मुल्कों में भी विद्यार्थी इस्राइल और अपनी सरकारों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे हैं। न्याय और समानता के मूल्य क्या भारत के छात्रों, अध्यापकों को झकझोरेंगे?
मेरी बेटी ने इन ख़बरों को देखकर कहा कि उसे भारत की याद आ रही है। अमेरिकी विश्वविद्यालयों में वहाँ की पुलिस छात्रों और अध्यापकों के साथ जैसा बर्ताव कर रही है, उसे देखकर 2020 में जामिया मिल्लिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में नागरिकता संशोधन क़ानून का विरोध कर रहे छात्रों पर भारत की पुलिस के दमन की याद आ गई।