अब सारी शिक्षा संस्थाओं को छात्रों और शिक्षकों के लिये ध्यान सत्र आयोजित करने हैं। लेकिन ध्यान कैसे करना है, यह वे ख़ुद तय नहीं कर सकते। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने ध्यान करने और करवाने का फ़रमान जारी करते हुए स्पष्ट किया है कि श्रीश्री रविशंकर की संस्था द आर्ट ऑफ़ लिविंग द्वारा ध्यान का जो तरीक़ा विकसित किया गया है, उसका पालन किया जाए। उनके प्रशिक्षकों से अध्यापकों और छात्रों को प्रशिक्षण दिलवाया जाए।
दिमाग़ का सरकारीकरण किया जा रहा है!
- वक़्त-बेवक़्त
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- 28 Nov, 2022

विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता का ख़याल अब किसी दूसरी दुनिया का विचार जान पड़ता है। कुलपति, डीन और विभागाध्यक्ष आदेश की प्रतीक्षा न करके ख़ुद ऐसे कार्यक्रम आयोजित करते हैं जिससे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में उनके नंबर बढ़ जाएँ। जो छात्र अभी अध्यापक पद के उम्मीदवार हैं, बढ़ चढ़कर ऐसे कार्यक्रमों में भाग लेते या इनका आयोजन करते हैं ताकि वे आरएसएस के वफ़ादार साबित हों और उनकी बहाली हो सके।
आयोग को संदेह है कि विश्वविद्यालय कहीं उसके काग़ज़ को दबा न दें, इसलिए वह निश्चित करना चाहता है कि 'ध्यान समन्वयक' नियुक्त करने की सूचना वेब साइट पर दी जाए। यह “आज़ादी के अमृत महोत्सव” वर्ष में ‘घर-घर ध्यान’ अभियान का हिस्सा है।
अब इस तरह के आदेश से कोई हैरान नहीं होता। कोई नहीं पूछता कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का यह काम नहीं है। विश्वविद्यालय में किस प्रकार के कार्यक्रम हों, किन विषयों पर गोष्ठियाँ हों, इसका निर्देश देने का काम आयोग का नहीं है। उसके क़ानून के मुताबिक़ उसका काम उच्च शिक्षा को प्रोत्साहित करना, उच्च शिक्षा के क्षेत्र में समन्वय करना और उच्च शिक्षा की गुणवत्ता सुनिश्चित करना है।