आनंद तेलतुंबडे को बंबई उच्च न्यायालय की दो सदस्यीय पीठ ने जमानत दे दी है। दूसरी तरफ़ गौतम नवलखा को तालोज़ा जेल से निकाल कर उनके मकान में गिरफ़्तार रखने का आदेश सर्वोच्च न्यायालय ने दिया है। जिस तर्क से आनंद को जमानत दी गई है, गौतम को भी ज़मानत मिलनी चाहिए। लेकिन उनकी उम्र और सेहत को देखते हुए अदालत ने उनपर रहम भर दिखलाने की इजाज़त ख़ुद को दी है।
व्यक्ति की स्वतंत्रता ज़रूरी या सरकार के रुतबे की रक्षा
- वक़्त-बेवक़्त
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- 21 Nov, 2022

आनंद माओवादी नेता मिलिंद के भाई हैं लेकिन इससे यह साबित नहीं होता कि वे ख़ुद माओवादी हैं। अगर पुलिस की यह बात मान भी ली जाए कि वे माओवादी दल से जुड़े हैं, हालाँकि पुलिस इसके लिए भी कोई प्रमाण पेश नहीं कर पाई है, तब भी यह सुबूत नहीं है कि वे किसी हिंसक कार्रवाई में शामिल थे। मिलिंद से उनकी मुलाक़ातों का भी कोई सबूत पेश नहीं किया गया। माओवादी दल उन्हें पैसे देता था, इसका भी कोई प्रमाण नहीं।
बंबई उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति गडकरी और जाधव की पीठ का यह फ़ैसला बहुत अहम है क्योंकि इसी पीठ ने अभी हाल में ज्योति जगताप और हैनी बाबू को इसी मामले में जमानत देने से इंकार कर दिया था।
दोनों प्रसंगों में अदालत ने अभियोग-पक्ष के आरोपों की जाँच करने में दो तरीक़े या दो अलग-अलग रवैयों का परिचय दिया है। आनंद को ज़मानत न दिए जाने की अभियोग पक्ष या भारतीय राज्य की दलील को अदालत ने ठुकरा दिया। इसके लिए उसने उनपर लगाए गए आरोपों की जाँच करके पाया कि अभियोग पक्ष उन्हें साबित करने के लिए न तो पर्याप्त सुबूत दे पा रहा है, न ही उसके तर्कों में कोई दम है।