‘मेरे घर आके तो देखो’, शबनम हाशमी ने कुछ रोज़ पहले एक अभियान का प्रस्ताव दिया। क्या एक दूसरे को अपने घर आने की दावत देना एक अभियान बनाया जा सकता है? हम सब अपने रिश्तेदारों, अपने दोस्तों के घर तो आते जाते ही रहते हैं! फिर इसे एक मुहिम क्यों बनाना? क्या अपने से अजनबी लोगों को अपने घर आने का न्योता दिया जा सकता है?
मेरे घर आके तो देखो
- वक़्त-बेवक़्त
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- 29 Mar, 2025

भारत में अजनबीपन बढ़ रहा है। इसमें कोई शक नहीं। इन बढ़ती दूरियों की वजह भी हम जानते हैं। यह अजनबीपन देश पर भी भारी पड़ रहा है। देश लोगों से बनता है। लेकिन लोगों में जब अजनबीपन होगा तो वो देश कैसा होगा। हालांकि विचारक और स्तंभकार अपूर्वानंद ने इसे 'अजनबीयत' कहा है। उन्होंने अजनबीयत को दूर करने का नुस्खा भी बताया है कि हम किसी को मेहमान करें, किसी के मेहमान हों।इस लेख को पढ़िए और आज ही किसी को मेहमान बनाइएः