पश्चिम बंगाल के श्यामपुकुर विधान सभा क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार संदीपन बिस्वास चुनाव प्रचार करते हुए वाम दलों के नेताओं के घर गए और उनसे अपने पक्ष में मतदान की प्रार्थना की। न तो नेताओं की ओर से उनका विरोध हुआ और न उनके पार्टी समर्थकों की ओर से। यह बंगाल के लिए इतनी अनहोनी घटना है कि ख़बर बन गई। लेकिन क्या यह सिर्फ़ बंगाल के लिए ही घटना है? क्या अन्य राज्यों में आप विरोधी दलों के बीच ऐसे सौहार्द की कल्पना कर सकते हैं?
बंगाल में वोट माँगने विरोधियों के घर गए; पूरे देश में ऐसा क्यों नहीं?
- वक़्त-बेवक़्त
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- 19 Apr, 2021

वह समय भी भारत में ही हुआ करता था जिसमें चुनाव प्रचार के दौरान गाड़ी ख़राब हो जाने पर दूसरे दल के प्रत्याशी गाड़ी दे दिया करते थे। ऐसे क़िस्से बिहार के आरंभिक चुनावों के प्रचार के सुनने को मिलते हैं। प्रतिद्वंद्वी प्रत्याशी साथ चाय भी पिया करते थे। अब तो विपक्ष मुक्त राज्य या राष्ट्र का नारा बुलंद किया जाने लगा है।
संदीपन बिस्वास ने कोलकाता कॉरपोरेशन के वार्ड नम्बर 10 के वाम मोर्चे की पार्षद करुणा सेनगुप्ता और पूर्व पार्षद सलिल चटर्जी से मुलाक़ात की। उन्होंने कहा कि जनतंत्र के लिए यह बेहद महत्त्वपूर्ण है। वे दोनों ही इस विधान सभा क्षेत्र के मतदाता हैं और दोनों ने ही सार्वजनिक सेवा की है। वे भले ही दूसरे राजनीतिक दल के हैं लेकिन मुझे उनसे अपने लिए मत का अनुरोध करना ही चाहिए। वाम नेताओं ने कहा कि वे दो भिन्न राजनीतिक विचारधाराओं में विश्वास करते हैं। लेकिन संदीपन बिस्वास को पूरा अधिकार है कि वे उनके घर आकर अपनी बात कहें। आख़िर जनतंत्र का मतलब और क्या है? इस क्षेत्र से हमारे दल के उम्मीदवार हैं इसलिए मैं अपने कार्यकर्ताओं को उनके पक्ष में मत देने को नहीं कह सकता लेकिन वे हमसे अपनी बात तो कह ही सकते हैं!