प्रेमचंद जयंती हिंदी भाषी कहे जानेवाले इलाक़ों में आज भी तुलसी जयंती के बाद सबसे लोकप्रिय सांस्कृतिक अवसर है। हालाँकि यह मालूम होता है कि कम से कम बिहार में अब तुलसी जयंती का रिवाज घट रहा है। हमारी किशोरावस्था तक तुलसी जयंती स्कूल-स्कूल में मनाई जाती थी। निबंध, भाषण के अलावा मानस अंत्याक्षरी प्रतियोगिताएँ होती थीं।

अपने बड़े भाई के साथ मैंने कई वर्षों तक सीवान के अलग-अलग स्कूलों में ऐसे आयोजनों में भागीदारी करके मानस, कवितावली, दोहावली के अलग-अलग प्रकार के, यानी गुटका से लेकर बृहद संस्करणों की बीसियों प्रतियाँ इकट्ठा कर ली थीं। यह एक बड़ा सांस्कृतिक अवसर हुआ था और सावन का महीना इसके लिए निश्चित था। इस्लामिया स्कूल से लेकर डी ए वी स्कूल तक इसका इंतज़ार रहता था। क्या यह संयोग है या तर्क संगत ही है कि जैसे-जैसे बाबरी मस्जिद की जगह को राम की जन्मभूमि कहकर उसे हथियाने का अभियान तेज हुआ वैसे-वैसे तुलसी जयंती में सामाजिक रुचि घटती गई?