“देश ने देख लिया कि हॉर्वर्डवालों की सोच क्या होती है और हार्ड वर्क वालों की सोच क्या होती है…” क्या यह बयान आपको याद आया जब आपने पढ़ा कि नरेंद्र मोदी की सरकार ने देश में येल, हॉर्वर्ड, ऑक्सफ़ोर्ड जैसे श्रेष्ठ विश्वविद्यालयों के परिसर खोलने का निर्णय किया है? हॉर्वर्ड की शिक्षा और उसके ज्ञान की खिल्ली उड़ानेवाला यह बयान उन्हीं नरेंद्र मोदी का था।
भारत में विदेशी विश्वविद्यालय: एक नई शोशेबाज़ी?
- वक़्त-बेवक़्त
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- 9 Jan, 2023

यूजीसी ने विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में अपने परिसर खोलने को उत्साहित करते हुए दो शर्तें लगाई हैं: वे कुछ भी ऐसा नहीं करेंगे जो ‘राष्ट्र हित’ या भारत में शिक्षा के “स्टैंडर्ड” को क्षति पहुँचाए। इन्हें क्षति पहुँचानेवाला पाठ्यक्रम या शिक्षा का कोई कार्यक्रम या कोई गतिविधि वे अपने परिसर में नहीं चला सकेंगे। भारत में शिक्षा का क्या “स्टैंडर्ड” रह गया है जिसे कोई नुक़सान पहुँचा सकता है?
नरेंद्र मोदी ने यह पहली बार नहीं किया था। जब वे ख़ुद को प्रधानमंत्री के रूप में जनता के सामने पेश कर रहे थे तब भी उन्होंने तमिलनाडु की एक सभा में लोगों से कहा था, “असल में हार्ड वर्क हॉर्वर्ड से ज़्यादा पावरफुल होता है।” https://rb.gy/rhk70k
यह विषयांतर है लेकिन मैं अंग्रेज़ी के शब्दों को ज्यों का त्यों रख देने के लिए माफ़ी माँगूँ उसके पहले यह बतलाना चाहता हूँ कि यह भारत के राष्ट्रवादी, हिंदीवादी प्रधानमंत्री की हिंदी है। इससे भाषा के प्रति उनके नज़रिए का पता चलता है। तुकबंदी और अनुप्रास के लोभ में अकसर अंग्रेज़ी की छौंक लगाने की आदत उन्हें है।