‘रामचरितमानस’ को लेकर बहस छिड़ गई है। इसे तो शुभ समाचार मानना चाहिए कि किसी समाज में साहित्यिक रचना पर सार्वजनिक बहस हो। लेकिन अभी बहस नहीं हो रही है बल्कि जिनके वक्तव्य से विवाद शुरू हुआ, उनको लानत भेजी जा रही है और धमकी दी जा रही है। धमकी, गाली गलौज, मार पीट की धमकी तो कोई सांस्कृतिक तरीक़ा नहीं है वाद-विवाद का लेकिन इससे कम से कम आज की संस्कृति के बारे में मालूम होता है। इससे मालूम होता है कि अमर्त्य सेन ने जिस भारतीय की बात की थी, जो तर्कशील है और जिसकी तर्क वितर्क में रुचि है, वह मात्र उनकी कल्पना की आशा है। असल भारतीय क्या तर्क नहीं करता, अपने से असहमत के साथ गाली गलौज करता है?