भारत की संघीय सरकार ने बी बी सी की एक डॉक्युमेंट्री को सोशल मीडिया के किसी भी मंच पर लगाए जाने पर रोक लगा दी है। यह डॉक्युमेंट्री 2002 में गुजरात में हुई मुसलमान विरोधी हिंसा की पड़ताल करते हुए इस निष्कर्ष पर पहुँचती है कि इसके लिये गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री जिम्मेवार थे। आख़िर वे सरकार के मुखिया थे। वे आज भारत के प्रधानमंत्री हैं। गुजरात की हिंसा में उनकी भूमिका के बारे में यह कोई नया नहीं है। अभी कुछ दिन पहले ही, गुजरात में विधानसभा के चुनाव के लिए प्रचार के दौरान भारत के गृहमंत्री ने ही कहा कि 2002 में दंगाइयों को ऐसा सबक़ सिखा दिया गया था जिसके चलते वे फिर सर नहीं उठा सके हैं और गुजरात में आज तक अमन है।
इस कूट भाषा में छिपे संदेश को समझना मुश्किल नहीं। हिंदुत्ववादी भाषा में दंगाई या हिंसक का इस्तेमाल मुसलमान के लिये किया जाता रहा है। हिंदू कभी हिंसक नहीं हो सकते और दंगाई तो क़तई नहीं। वे हमेशा प्रतिक्रिया में ही हिंसा करने को मजबूर होते हैं। तो गृहमंत्री के बयान का आशय स्पष्ट था। वे ख़ुद ही गुजरात के हिंदुओं को 2002 के पराक्रम की याद दिला रहे थे।और मुसलमानों को एक तरह से धमकी भी दे रहे थे। जो हो, गृहमंत्री के बयान का मतलब तो यही था कि 2002 की गुजरात की हिंसा सबक़ सिखाने के लिए की या करवाई गई थी जिसके बाद ताकि दंगाई सर उठाने काबिल न रह जाएँ।