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भारतीय राजनीति को संवैधानिक दायरे में ला पाएगी भारत जोड़ो यात्रा?

भारत जोड़ो यात्रा की चुनौती एक प्रकार से हम सबकी चुनौती है। अरसे से हम सब रणनीतिक भाषा बोलते आए हैं। हम सबने स्वयं धर्मनिरपेक्षता के मूल्य के प्रति लापरवाही बरती है। हमने बहुसंख्यकवाद से कभी न कभी समझौता किया है। उसे समाज में स्वीकार्यता प्रदान की है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हमारे लिए सम्माननीय रहा है। हमने झूठ भी बोला है और उसके साथ समझौता भी किया है। 
अपूर्वानंद

वर्षांत के विश्राम के बाद ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के पथिक फिर चल पड़ेंगे। अब तक के आखिरी पड़ाव दिल्ली से आगे कश्मीर की तरफ। साढ़े तीन महीने पहले जब राहुल गाँधी के नेतृत्व में यात्रा शुरू हुई थी तो इसे उपहास, विस्मय, तिरस्कार के साथ देखा गया। बड़े, व्यापक पहुँचवाले मीडिया के मंचों ने इसकी उपेक्षा की। धीरे-धीरे, चलते चलते इस यात्रा ने उनका भी ध्यान खींचना शुरू किया जो इस पर कोई चर्चा नहीं करना चाहते थे। लेकिन इस समय भी बात राहुल गाँधी तक सीमित रखने की कोशिश की गई। 

रोज़ाना 23 से 25 किलोमीटर चलना क्या संभव है? राहुल गाँधी की तेज़ रफ़्तार, उनकी दाढ़ी और फिर उनकी टी शर्ट: इन पर बहस करके उन सवालों को छिपाने की कोशिश की गई जिनको पूछते हुए और जिनका जवाब खोजते हुए ही ये यात्री चल रहे हैं।

यात्रा कांग्रेस पार्टी का आयोजन है। इसके नेता राहुल गाँधी हैं। इस वजह से यह कहना बेमानी होगा कि यात्रा राजनीतिक नहीं है। भारत में राजनीति की प्रभावकारिता चुनाव में उसके प्रदर्शन से मापी जाती है। जब दो राज्यों में चुनाव होनेवाले थे तब कांग्रेस पार्टी का इस यात्रा में अपनी ऊर्जा लगाना कितना बुद्धिमत्तापूर्ण निर्णय था? ऐसा नहीं है कि काँग्रेस के नेताओं ने इस पर नहीं सोचा होगा। लेकिन चुनाव के ऊपर यात्रा को तरजीह देने का अर्थ ही यह है कि कांग्रेस किसी भी कीमत पर चुनाव जीत लेने में यकीन नहीं करती। राजनीति अगर मनोवैज्ञानिक तिकड़म तक सीमित रह जाए तो वह मूल्यहीन है। 

congress rahul gandhi Bharat Jodo Yatra in kashmir - Satya Hindi

भारतीय राजनीति का आधार दक्षिण और वह भी हिंदुत्व की तरफ खिसक गया है। उसे वापस संवैधानिक दायरे में लाना बड़ी चुनौती है। यात्रा यह करना चाहती है। 

उसूलों की हिफाजत  

यात्रा की पहली बड़ी उपलब्धि खुद कांग्रेस का अपने उसूलों में यकीन लौटना है। अरसे से पार्टी में विचार या सिद्धांत कोई मसला नहीं था। किसी भी तरह सत्ता हासिल करने से अधिक गौरव की बात इन उसूलों की हिफाजत करना है। इससे पार्टी के कार्यकर्ताओं में आत्मसम्मान पैदा हुआ है। वे कुर्सी के लिए नहीं, किसी बड़े मूल्य के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इस गौरव बोध का जगना पार्टी के लिए अच्छी खबर है। 

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दूसरी अच्छी बात है कांग्रेस के नेताओं का, खुद राहुल गाँधी का पार्टी पर यकीन पैदा होना। पार्टी में सारे लोग सिर्फ कुर्सी के लिए नहीं, ऐसी चीज़ के लिए भी मेहनत कर सकते हैं जिससे कोई फौरी फायदा नहीं मिलेगा। पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं में मित्रतापूर्ण रिश्ता बनना, यह अहसास कि वे एक संघर्ष में साथ हैं, उनमें कोई किसी का संरक्षक नहीं है: यह सब कुछ पार्टी को जीवन ही देगा, उसे मजबूत करेगा।  

लोगों की निगाह में कांग्रेस की साख का लौटना भारतीय राजनीति के लिए शुभ समाचार है। आखिरकार यह कांग्रेस ने ही सोचा कि भारत के समाज को एक करना अभी किसी दूसरी चीज़ के मुकाबले कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। उसी ने अपनी सारी ताकत इसके लिए झोंक दी। यह कोई बेईमान ही कह सकता है कि यह मुख्य रूप से राहुल गाँधी की छवि को सुधारने का उपक्रम है। 

इस यात्रा ने लोगों को यह साहस दिया है कि फासिज़्म से लड़ा जा सकता है और परिणाम की चिंता के बगैर उससे लड़ा जाना चाहिए। वही इंसान होने का सबूत है।

ईमानदार भाषा की ज़रूरत

इस यात्रा का आख़िरी बिंदु ही उसकी सबसे बड़ी चुनौती है। कश्मीर में तिरंगा लहराकर लौट आना काफी न होगा। चुनौती उसकी नहीं है। वह तिरंगा कश्मीर में बरसों से बंदूक़ों के घेरे में फहराया जाता रहा है। प्रश्न तो तिरंगे की विश्वसनीयता को कश्मीरी जनता की निगाह में बहाल करने का है। इस समय तो भारतीय राज्य के दमन और धोखे को छिपाने के लिए ही इस तिरंगे का इस्तेमाल हो रहा है। 

असल चुनौती इसकी है कि कश्मीरी जन को यह यक़ीन दिलाया जा सके कि भारत के लोग भारतीय राष्ट्र के नाम पर किए जा रहे छल के साथ नहीं हैं। इसके लिए निष्कपट दिल दिमाग़ की ज़रूरत होगी और ईमानदार भाषा की भी।

यही सबसे बड़ी चुनौती ‘भारत जोड़ो यात्रा’ की है। वह बोल पाना जो बोला जाना ज़रूरी है और जो भाषा में विश्वास पैदा करता है! भाषा को रणनीतिक कौशल से मुक्त करना और एकार्थी बनाना। रघुवीर सहाय ने कविता में यह संकल्प व्यक्त किया था कि कवि जो बोले उसमें दो अर्थ न हों। अभी भारत में जो राजनीति प्रभुत्वशाली है, वह जो बोलती है वह उसका अर्थ नहीं होता। वह भाषा को उसके मूल कर्तव्य से अलग करती है। भाषा का काम है यथार्थ को उजागर करना, न सिर्फ़ बोलनेवाले को सुननेवाले से जोड़ना बल्कि सभी लोगों को एक-दूसरे से जोड़ना। आज वह लोगों को एक-दूसरे से अलग करने के लिए इस्तेमाल की जा रही है। 

इसलिए भाषा में मैत्री के साथ साहस का पुनर्वास ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का एक प्रमुख कर्तव्य है। वह यथार्थ पर पर्दा न डाले, उसे रौशन करे।

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यह काम आसान नहीं। और यह कठिनाई सिर्फ़ कश्मीर के प्रसंग में नहीं है। जैसे यह कहना कि “मीडिया दिन रात हिंदू-मुसलमान करता रहता है जबकि देश में सब एक दूसरे से प्यार करते हैं, या प्यार से रहना चाहते हैं,” असली समस्या से परहेज़ करना है। असली समस्या इस वक्त हिंदू-मुसलमान के बीच अलगाव की नहीं, बल्कि यह है कि देश में मुसलमान और ईसाई विरोधी घृणा का सर्वव्यापी वातावरण है।जब तक समस्या को इस तरह नहीं कहेंगे, उसके समाधान का ईमानदार प्रयास भी नहीं होगा। मुसलमानों और ईसाइयों के भीतर हिंदुओं के ख़िलाफ़ नफ़रत नहीं फैलाई जा रही है। मंदिर-मस्जिद का विवाद नहीं है, बल्कि मस्जिदों पर हमला मसला है। इसे इस रूप में कहने में हममें से ही ज्यादातर लोग हिचक जाते हैं। तो कांग्रेस पार्टी को इतना साफ बोलने में तो वक्त लगेगा। क्योंकि पार्टी को साहस जनता से भी चाहिए। 
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बहुसंख्यकवाद से समझौता 

यात्रा की चुनौती एक प्रकार से हम सबकी चुनौती है। अरसे से हम सब रणनीतिक भाषा बोलते आए हैं। हम सबने स्वयं धर्मनिरपेक्षता के मूल्य के प्रति लापरवाही बरती है। हमने बहुसंख्यकवाद से कभी न कभी समझौता किया है। उसे समाज में स्वीकार्यता प्रदान की है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हमारे लिए सम्माननीय रहा है। हमने झूठ भी बोला है और उसके साथ समझौता भी किया है। 

वह जयप्रकाश आंदोलन का झूठ हो या विश्वनाथ प्रताप सिंह के आंदोलन का झूठ हो या इंडिया अगेन्स्ट करप्शन का झूठ हो, हमने उस झूठ को उपयोगी मानकर स्वीकार किया। नतीजा सामने है। अब झूठ हमारे कंधों पर बैठ गया है और हम चाहते हैं कि काँग्रेस पार्टी उससे किसी तरह हमें मुक्त कर दे।   

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भारत जिस संकट में है उससे उबारने का एकमात्र जिम्मा कांग्रेस पार्टी का ही नहीं है। यह नहीं हो सकता कि बाकी पार्टियाँ पुराने तरीके से चुनावी राजनीति करती रहें और कांग्रेस देश को इस दलदल से खींचकर बाहर ले आए।

उसी तरह यह भी नहीं हो सकता कि हमारा बुद्धिजीवी समाज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा की राजनीति को एक हद तक स्वीकार्य माने, उनके गुण दोष पर विचार करे, उसके राष्ट्रवाद को विचारणीय माने और कांग्रेस की इस यात्रा से निराशा व्यक्त करे कि वह वातावरण नहीं बदल पा रही है। 

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