न्यूज़ीलैंड के क्राइस्टचर्च में दो मसजिदों पर हुए हमले के बाद न सिर्फ़ उस देश में बल्कि पूरे यूरोप में आत्मनिरीक्षण की ज़रूरत बताई जा रही है। न्यूज़ीलैंड की प्रधानमंत्री ने इस हमले पर सदमा ज़ाहिर करते हुए कहा है कि हमलावर उनमें से एक नहीं है। वह कहना यह चाहती हैं कि हमलावर ब्रेन्टन टैरंट देश के विचार का नुमाइंदा नहीं है। वह मूल रूप से ऑस्ट्रेलिया का है और कुछ वक़्त से न्यूज़ीलैंड में रह रहा था। ऑस्ट्रेलिया के राज्य प्रमुख ने भी अफ़सोस जताया है कि उनके एक देशवासी ने यह किया। उनके साथ सामान्य नागरिकों ने मसजिदों के बाहर फूल रखकर अपनी हमदर्दी जताने की कोशिश की। न्यूज़ीलैंड के बाहर दूसरे देशों में भी कई जगह यह किया गया। ध्यान रहे हमने भारत में यह नहीं किया! ठीक उसी समय यह विचार-विमर्श भी शुरू हुआ कि क्या यह कहकर देश बच सकता है कि यह एक अकेले शख़्स की बीमार ज़हनियत का नतीजा था?
न्यूज़ीलैंड मसजिद हमलावर का घोषणा-पत्र मानो भारत में बना!
- वक़्त-बेवक़्त
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- 7 Apr, 2019

जैसे यहूदी विरोध आपके भीतर संस्कार की तरह सोया रहता है, वैसे ही मुसलमान विरोध भी। इसे इसलामोफ़ोबिया कहा गया है। कुछ विद्वानों का कहना है कि लोगों के भीतर मुसलमानों को लेकर तरह-तरह के पूर्वग्रह हैं।