एक और हफ्ता गुज़र गया। पौ फटने की वेला है। कोयल की कूक सुन पा रहा हूँ। गिलहरी की बेचैन चूँ-चूँ। कई महीनों में पहली बार एम्बुलेंस के सायरन की आवाज़ों से अबाधित। तो क्या हम दुःस्वप्न के दूसरे छोर पर हैं?