इस स्तंभ की ज्यादातर कड़ियों का विषय मुसलमान विरोधी हिंसा रहा है। बल्कि यह आरोप भी लगाया जा सकता है कि पिछले कुछ वर्षों में इन पंक्तियों के लेखक ने जो कुछ भी लिखा है, उसका बहुलांश भारत में बढ़ती हुई मुसलमान और ईसाई विरोधी हिंसा से ही संबंधित है। कई मित्रों को यह दुहराव लगता है और बहुतों को इससे ऊब होती है।
बीजेपी के नेताओं का केंद्रीय विषय मुसलमान विरोधी नफ़रत क्यों है?
- वक़्त-बेवक़्त
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- 14 Jun, 2021

ध्रुवीकरण को भी रोजाना का अभ्यास बनाना पड़ता है। उसे रोज़मर्रा की भाषा में इस कदर शामिल कर दिया जाता है कि वह समाज का स्वभाव बन जाए। इसलिए मसला मात्र चुनाव में अपने लिए येन केन प्रकारेण वोटर बनाने का नहीं है। हमारे बहुत सारे मित्र इस तरह के बयानों को बहुत तवज्जो नहीं देने की सलाह देते हैं।
अभिनय और लेखन
ऐसी प्रतिक्रिया देख-सुनकर लगने लगता है कि पाठक लेखन को अभिनय की तरह का ही कार्य मानते हैं। जैसे अभिनेता से उम्मीद की जाती है कि उसकी भूमिकाओं में विविधता होगी वैसे ही लेखक से अपेक्षा रहती है कि उसके विषयों में बहुलता होगी। सिर्फ खलनायक की भूमिका कोई निभा रहा हो, या कोई सिर्फ पुलिस अफ़सर का ही रोल निभाता रहे तो ऐसे अभिनेता की अभिनय क्षमता पर संदेह होने लगता है।