भाषा फिर से चर्चा में है। यह किसी समाज और देश के स्वास्थ्य की निशानी हो सकती है अगर वह सचमुच भाषा के मुद्दों पर बात कर रहा हो। मसलन किसी भाषा में अभिवादन के क्या नियम हैं, क्यों हरियाणवी सुनकर मैथिली भाषी पहली बार सदमे में चले जाते हैं और क्यों उनकी प्रतिक्रिया से हरियाणवी हैरान रह जाते हैं! मुझे शाहपुर जाट के अपने मकान मालिक के साथ अपनी पत्नी पूर्वा का एक संवाद याद है। पानी ख़त्म हो गया था। जैसा दिल्ली के ऐसे इलाक़ों में क़ायदा है, मकान मालिक मानते हैं कि किरायेदारों ने ही पानी बहा दिया होगा। सो, हमारे मकान मालिक आए और उन्होंने पूर्वा को अपने ख़ास अन्दाज़ में कहा, “पानी ख़त्म! अब थूक से नहाना!” पूर्वा के कान इस क़िस्म के संवाद के आदी न थे। आँखों में अपमान के मारे पानी भर आया। अब भले आदमी, हमारे मकान मालिक के घबराने की बारी थी। वह माफ़ी माँगने लगे, “हम तो ऐसे ही बोलते हैं। आपकी बेइज्ज़ती का कोई इरादा नहीं!” लेकिन आँसुओं को सूखने में वक़्त लगा।