इस निर्णय का स्वागत किया जाना चाहिए। इससे विश्वविद्यालय प्रशासन का रुतबा कम नहीं हुआ। लेकिन इससे एक चिंता पैदा होती है। फ़र्ज़ कीजिए कि इस मसले को राष्ट्रीय मीडिया में जगह न मिलती तो क्या विश्वविद्यालय प्रशासन अपने दंड के निर्णय पर पुनर्विचार करता? दूसरे, कि विश्वविद्यालय जैसी जगह में जहाँ अध्यापन हो या शोध, हर जगह जिस हड़बड़ी और पूर्वग्रह से सावधान रहने का अभ्यास किया और कराया जाता है, प्रशासन ख़ुद उसी का शिकार हो जाए तो फिर विश्वविद्यालय का क़ारोबार कैसे चलेगा?