इस निर्णय का स्वागत किया जाना चाहिए। इससे विश्वविद्यालय प्रशासन का रुतबा कम नहीं हुआ। लेकिन इससे एक चिंता पैदा होती है। फ़र्ज़ कीजिए कि इस मसले को राष्ट्रीय मीडिया में जगह न मिलती तो क्या विश्वविद्यालय प्रशासन अपने दंड के निर्णय पर पुनर्विचार करता? दूसरे, कि विश्वविद्यालय जैसी जगह में जहाँ अध्यापन हो या शोध, हर जगह जिस हड़बड़ी और पूर्वग्रह से सावधान रहने का अभ्यास किया और कराया जाता है, प्रशासन ख़ुद उसी का शिकार हो जाए तो फिर विश्वविद्यालय का क़ारोबार कैसे चलेगा?
वर्धा: गाँधी के नाम पर विश्वविद्यालय में ‘गाँधीवादी विरोध’ गुनाह?
- वक़्त-बेवक़्त
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- 14 Oct, 2019

ख़बर मिली है कि वर्धा के महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय प्रशासन ने अपने उस आदेश को वापस ले लिया है जिसके मुताबिक़ 6 छात्रों को विश्वविद्यालय से इस कारण निलंबित कर दिया गया था कि उन्होंने चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन किया। निलंबन को रद्द करने के इस फ़ैसले में कहा गया है कि पहले आदेश में तकनीकी विसंगति थी। यह भी कि प्रशासन को यह ख़्याल आया कि छात्रों को नैसर्गिक न्याय मिलना चाहिए।
वर्धा के महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के 6 छात्र महाराष्ट्र विधान सभा चुनाव के क़रीब होने के कारण लगाई गई चुनाव संहिता का उल्लंघन करने के आरोप में विश्वविद्यालय से निकाल दिए गए थे। लेकिन वर्धा के ज़िलाधीश ने विश्वविद्यालय को ख़बर भेजी कि संहिता का सहारा लेकर वह छात्रों को निलंबित नहीं कर सकता। जब अख़बारवालों ने इसपर विश्वविद्यालय प्रशासन से उसकी प्रतिक्रिया माँगी तो उसने कहा कि मामला मूलतः अनुशासनहीनता का था, वह कारण तो बना हुआ है। विश्वविद्यालय ने इन छात्रों को परिसर में इकट्ठा होने से मना किया था। इस आदेश का उन्होंने उल्लंघन किया, इसलिए उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई की गई। यह जवाब जिस बात को छिपाने की कोशिश करता है लेकिन जो छिप नहीं सकती क्योंकि उसका आदेश सार्वजनिक है, वह यह कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने छात्रों को इकट्ठा होने से मना करने का कारण यह नहीं बताया था कि राज्य में ही चुनाव आचार संहिता लागू है और उस वजह से छात्र यह सामूहिक कार्यक्रम नहीं कर सकते। इसलिए क़ायदे से निलंबन या निष्कासन के आदेश में उसे कारण नहीं बनाया जाना चाहिए था।