कौशलेंद्र प्रपन्न नहीं रहे। दिल के दौरे के बाद अस्पताल में मौत से जूझते हुए उन्हें हार माननी पड़ी। लेकिन यह हार कोई उनकी हार नहीं है। मौत से शायद ही कोई जीत पाया है। कौशलेंद्र की मृत्यु तकनीकी रूप से दिल के दौरे के बाद की पेचीदगियों से हुई। इसके लिए किसी व्यक्ति या संस्था को किसी भी अदालत में ज़िम्मेवार नहीं ठहराया जा सकता। फिर भी कौशलेंद्र की मौत से जुड़े हुए सवाल हैं जिनका जवाब अगर हम न दें या अगर उनका सामना हम न करें तो मान लेना चाहिए कि दिमाग़ी तौर पर हम मृत हो चुके हैं।
शिक्षा पर कौशलेंद्र प्रपन्न के सवाल से ‘घबरा’ गया था सिस्टम?
- वक़्त-बेवक़्त
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- 16 Sep, 2019

कौशलेंद्र प्रपन्न ने शिक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाए थे। मालूम हुआ कि उन्हें नौकरी से निकाला गया। बाद में दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया। यह कोई बड़ी ख़बर नहीं बन सकती। इस घटना और उनकी मौत के बीच कार्य कारण संबंध स्थापित करना मुमकिन नहीं। लेकिन क्या उनके अधिकारी एक बार आईना देखते वक़्त कौशलेंद्र को याद कर पाएँगे? उनके साथ जो बर्ताव उन्होंने किया, क्या उसके लिए उन्हें एक पल को भी पछतावा होगा?
कौशलेंद्र शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय थे, वह भी स्कूली शिक्षा। यह एक ऐसा इलाक़ा है जिसे आप महतोजी का दालान या खाला का घर कह सकते हैं जिसमें घुस आने और जम जाने के लिए आपको किसी की इजाज़त की ज़रूरत नहीं होती। इसलिए वह बैंक हो या कोई कंपनी या अख़बार, सभी शिक्षा के क्षेत्र में कुछ न कुछ करते हुए दिखलाई पड़ते हैं। बल्कि ये सब अब शिक्षा के सिद्धांतकार भी बन चुके हैं। वे शिक्षकों का प्रशिक्षण भी कर रहे हैं, यह भी बता रहे हैं कि स्कूल किस क़िस्म के होने चाहिए और पाठ्यक्रम कैसे बनाए जाएँ।