loader

नूपुर शर्मा पर टिप्पणी के लिए सुप्रीम कोर्ट पर हमला क्यों?

“भारत में इंसाफ की उम्मीद न रही। अदालत इस्लामवादी हो गई है, शरिया अदालत की तरह बर्ताव कर रही है। वह नूपुर शर्मा को कातिलों के हवाले कर देना चाहती है।” चारों तरफ से हिंदुत्ववादियों की लानत की बौछार सर्वोच्च न्यायालय पर पड़ना शुरू हो गई। वे सब भूल गए कि इसी पीठ के न्यायाधीश के कारण महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी की सरकार गिराई जा सकी है।
अपूर्वानंद

दक्षिणपंथी, वह भी हिंदुत्ववादी आक्रामकता किस स्तर तक पहुँच गई है, उसका कुछ अंदाज़ सर्वोच्च न्यायालय को अभी हुआ है। पिछले कुछ समय से उसे अपने हर फैसले के लिए या फ़ैसला न लेने की दृढ़ता के लिए “हिंदुत्ववादियों या ‘राष्ट्रवादियों’ की वाहवाही मिलती रही है। 

लेकिन पहली बार उसकी एक पीठ को उनके कोप का शिकार होना पड़ रहा है। वह भी किसी निर्णय के लिए नहीं, बल्कि इसलिए कि उसने एक मामले में सुनवाई के दौरान उन हिंदुत्ववादियों में से एक को लेकर नाराज़गी भरी तल्ख़ टिप्पणियाँ भर कीं। उनके ख़िलाफ़ कोई निर्णय नहीं दिया। फिर भी।

अदालत के सामने भारतीय जनता पार्टी की (अब निलंबित) प्रवक्ता नूपुर शर्मा की याचिका थी कि उनके ख़िलाफ़ एक ही मामले में देश के कई राज्यों में मामला दर्ज किया गया है। उन्होंने इन सबको इकट्ठा करके एक ही जगह मुक़दमा चलाने का आदेश देने का आग्रह अदालत से किया था। 

ताज़ा ख़बरें

शिवलिंग बनाम फव्वारे का विवाद

मामला हम सबको पता है। ज्ञानवापी मस्जिद को विवादित बनाने के लिए एक सर्वेक्षण की रिपोर्ट को सार्वजनिक करके दावा किया गया कि मस्जिद परिसर में एक शिवलिंग पाया गया है। मस्जिद समिति ने कहा कि जिसे शिवलिंग कहा जा रहा है, वह वजूखाने में बना हुआ एक फ़व्वारा है। मस्जिद में आने जाने वाले हिंदुओं ने भी बतलाया कि वह फ़व्वारा ही है। 

लेकिन भारतीय जनता पार्टी से जुड़े लोगों ने और शेष हिंदुत्ववादियों ने जिद पकड़ ली कि वह शिवलिंग है। उसे फ़व्वारा कहना भी गुनाह हो गया। उसे हिंदुओं की भावना का अपमान ठहराया जाने लगा।

‘टाइम्स नाउ’ नामक टीवी चैनल पर ऐसी ही एक बहस में भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय प्रवक्ता नूपुर शर्मा ने उत्तेजना में पैग़म्बर साहब के बारे में अभद्र टिप्पणी की। उसे बाद में दुहराया गया। भाजपा के दिल्ली के मीडिया प्रमुख नवीन जिंदल ने भी उसको प्रसारित किया। 

नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल की अपमानजनक टिप्पणियों के बारे में जब ‘ऑल्ट न्यूज़’ के संस्थापक संपादक मोहम्मद ज़ुबैर ने सबका ध्यान खींचा और पूछा कि उनपर क्यों कार्रवाई नहीं हो रही है तो ज़ुबैर पर हमला शुरू हो गया। यह कहते हुए कि वे नूपुर शर्मा के ख़िलाफ़ घृणा प्रचार कर रहे हैं और हिंसा को उकसावा दे रहे हैं।

खाड़ी देशों की नाराजगी 

ज़ुबैर के ध्यान दिलाने के बाद भी न तो दिल्ली सरकार ने, न दिल्ली पुलिस ने, न भारत सरकार ने, न भाजपा ने कोई कार्रवाई की। बल्कि उन्होंने जो पैग़म्बर साहब के बारे में अभद्र टिप्पणियाँ की थीं, उन्हें चटखारे लेकर प्रसारित किया जाता रहा। वह तो कुछ दिन बाद जब खाड़ी के देशों की सरकारों की तरफ से इन टिप्पणियों पर ऐतराज जाहिर किया जाने लगा तब भारत सरकार चेती। 

छुटभैया नेता?

एक आधी-अधूरी सी सफाई दी गई। दोनों ही नेताओं को छुटभैया ठहराया गया। भाजपा ने दोनों को निलंबित कर दिया। बिना उनके बयान पर माफी मांगे सारे धर्मों के प्रति आदर की बात कही गई।

भाजपा के इन दोनों नेताओं को छुटभैया मानना जरा मुश्किल है। राष्ट्रीय प्रवक्ता और दिल्ली का मीडिया प्रमुख छुटभैया हो, यह किसी के गले शायद ही उतरे। जो हो, भाजपा से निलंबन को ही उनके अपराध के लिए पर्याप्त दंड मान लिया गया। दिल्ली पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। इसका मतलब यह था कि वही राज्य जो किसी को, खासकर अगर वह मुसलमान है, सरकार विरोधी टिप्पणी के लिए भी तुरंत गिरफ्तार कर लेता है, नूपुर शर्मा के इस कृत्य को इतना गंभीर नहीं मान रहा था कि उनपर कार्रवाई हो। उसके लिए खाड़ी के देशों को संतुष्ट करना ज़रूरी था, भारत के मुसलमानों को सुनना नहीं। 

Justice JB Pardiwala on Nupur Sharma comments on Prophet Muhammed  - Satya Hindi

जिग्नेश मेवाणी की गिरफ़्तारी

आपको गुजरात के विधायक जिग्नेश मेवाणी की गिरफ़्तारी याद होगी। उनका जुर्म कितना संगीन था? उन्होंने प्रधानमंत्री से गुजरात के हिंसा पीड़ित इलाकों का दौरा करने को कहा था। इस बयान से असम के भाजपा समर्थक की भावना आहत हो गई। और उनकी भावना को असम पुलिस ने इतनी गंभीरता से लिया कि उसी रात 1000 किलोमीटर उड़कर, दौड़कर जिग्नेश को गुजरात से गिरफ्तार कर लिया। 

फिर दिल्ली पुलिस या सरकार इस मामले में क्यों हाथ पर हाथ धरे बैठी रही? क्यों भाजपा से जुड़े लोगों को इसका अधिकार है और पूरी छूट है कि वे मुसलमानों का अपमान करते रहें?  

Justice JB Pardiwala on Nupur Sharma comments on Prophet Muhammed  - Satya Hindi

देश के लोगों के दो तबकों के बीच इतना भेदभाव उस तबके को चुभता है जो इसका शिकार है। इसी वजह से जगह-जगह मुसलमानों की तरफ़ से क्षोभ जाहिर करने के लिए प्रदर्शन किए गए। कुछ जगह हिंसा हुई। वह कैसे हुई, किसने भड़काई इसकी जांच की जरूरत ही नहीं महसूस की गई। राँची में तो दो मुसलमान ही मार डाले गए। 

इलाहाबाद में जांच से पहले ही आफ़रीन फातिमा का घर गिरा दिया गया। वही सहारनपुर में मुसलमानों के साथ किया गया।

गिरफ्तारियाँ मुसलमानों की ही हुईं। यह सब कुछ घटित हो जाने के कुछ दिन बाद राजस्थान में नूपुर शर्मा के पक्ष में रैली आयोजित की गई। यह संयोग नहीं कि किसी भाजपा शासित राज्य में नूपुर शर्मा के पक्ष में ऐसा प्रदर्शन नहीं हुआ। राजस्थान में किया गया जो काँग्रेस शासित राज्य है और जहाँ साल भर बाद चुनाव होने वाले हैं। और फिर उदयपुर में एक दर्जी कन्हैयालाल की दो मुसलमानों ने गले पर वार करके हत्या कर दी। वह हत्या सुनियोजित थी। हत्या का वीडियो बनाया गया। दोनों ने इस हत्या को अपने रसूल की शान की हिफाजत के लिए उठाया गया कदम बतलाया। 

भारत भर के मुसलमानों ने, हर तरह से इस हत्या की निंदा की। हाँ! रसूल उन्हें प्यारे हैं लेकिन उनके नाम पर हिंसा स्वीकार नहीं। इस चर्चा को रोककर अपने विषय पर लौटें। 

नूपुर शर्मा पर देश के अलग-अलग हिस्सों में शिकायत दर्ज कराई गई। इतने हंगामे और दबाव के बाद दिल्ली पुलिस ने भी एक एफआईआर दर्ज की। लेकिन उसमें उनके साथ ऐसे पत्रकारों के नाम, जो मुसलमान हैं, डाल दिए। यानी उन्हें एक सामूहिक एफआईआर में डाल दिया। इससे यह समझ में तो आ ही गया कि उनके कृत्य को पुलिस इतना गंभीर नहीं मानती। 

और वही पुलिस जो आपकी फ़ेसबुक पोस्ट, ट्वीट के लिए हथकड़ी लिए आपका दरवाजा खटखटाती रही है, यह दलील दे रही है कि उसने जाँच शुरू कर दी है और नूपुर शर्मा जाँच में शामिल हुई हैं।   

Justice JB Pardiwala on Nupur Sharma comments on Prophet Muhammed  - Satya Hindi

मोहम्मद ज़ुबैर की गिरफ्तारी

ध्यान दें, दिल्ली पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार नहीं किया। उसी पुलिस ने जिसने ‘आल्ट न्यूज’ के मोहम्मद ज़ुबैर को 30 साल से भी अधिक पुरानी हृषिकेश मुखर्जी की एक हास्य फिल्म ‘किसी से न कहना’ के एक दृश्य को ट्वीट करने के आरोप में तुरंत गिरफ्तार कर लिया। वह भी एक बेनामी शिकायत पर। 

यह संदर्भ है सर्वोच्च न्यायालय की एक पीठ की नाराजगी का जब नूपुर शर्मा उसके सामने इस अर्जी के साथ आईं कि देश के अलग-अलग हिस्सों में जो एफआईआर हैं, उन्हें इकट्ठा करके एक ही जगह मुकदमा चलाया जाए जिससे वे हैरान न हों। इस पर अदालत फट पड़ी और उसने नूपुर शर्मा पर और पुलिस की भर्त्सना करते हुए खासी सख्त टिप्पणी की। 

अदालत की टिप्पणियां 

शर्मा ही आज देश की बदअमनी के लिए जिम्मेदार हैं, पुलिस उनके लिए लाल कालीन बिछा रही है, वह पक्षपातपूर्ण व्यवहार कर रही है, उन्हें अब तक गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया, आदि, आदि! यह कि उन्हें देश भर से माफी माँगनी चाहिए। 

इन टिप्पणियों ने सनसनी फैला दी। नूपुर शर्मा के समर्थक स्तब्ध रह गए। घृणा प्रचार करना गलत है, अपराध है, उसके लिए कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए या गिरफ्तार होना चाहिए, यह सब कुछ उनके लिए अकल्पनीय है। यह तो उनका अधिकार है। अपराधी वे हैं जो उनके घृणा प्रचार को अपराध बतलाते हैं। 

जैसा तीस्ता सीतलवाड और मोहम्मद ज़ुबैर की गिरफ्तारियों से जाहिर है। 

“भारत में इंसाफ की उम्मीद न रही। अदालत इस्लामवादी हो गई है, शरिया अदालत की तरह बर्ताव कर रही है। वह नूपुर शर्मा को कातिलों के हवाले कर देना चाहती है।” चारों तरफ से हिंदुत्ववादियों की लानत की बौछार सर्वोच्च न्यायालय पर पड़ना शुरू हो गई। वे सब भूल गए कि इसी पीठ के न्यायाधीश के कारण महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी की सरकार गिराई जा सकी है। वह एक दिन पहले ही उसने किया है। 

लेकिन भाजपा समर्थकों के मुताबिक आपको अच्छाई और इंसाफ या प्रक्रिया का इरादा  जाहिर करने का अधिकार भी नहीं है। 

वक़्त-बेवक़्त से और खबरें

अदालत ने जो गर्जन-तर्जन किया उसका कोई व्यावहारिक आशय नहीं था। अदालत ने नूपुर शर्मा को राहत न देकर न्याय नहीं किया। एक ही मामले में अगर पूरे देश में मामले दर्ज कर दिए जाएं तो यह किया ही जाना चाहिए कि मुकदमा एक जगह चले। वह कितनी जगह भागता फिरे! क्या हमें याद नहीं कि इसी कारण कलाकार एमएफ हुसैन को देश छोड़ देना पड़ा था? 

नूपुर शर्मा की गिरफ़्तारी पुलिस ने नहीं की, यह पुलिस की गलती हो सकती है। इसकी सजा नूपुर शर्मा को नहीं मिलनी चाहिए। 

व्यावहारिक तौर पर अदालत इस याचिका का दायरा बड़ा करके पुलिस को न्यायसंगत प्रक्रियागत कार्रवाई का निर्देश दे सकती थी। लेकिन अदालत को भी मालूम है कि उसके लिए क्या विचारणीय है और क्या करणीय है।

लेकिन इस पूरे प्रकरण से दो बातें साफ हुईं। जो नूपुर शर्मा के घृणा प्रचारवाले कृत्य के आलोचक हैं, उनमें भी अधिकतर ने कहा कि उन्हें राहत न देकर अदालत ने न्याय नहीं किया। लेकिन जो नूपुर शर्मा के समर्थक हैं वे अदालत के नैतिक उबाल पर खफा हैं। वे जुबानी नैतिकता को भी राष्ट्रविरोधी मानते हैं। 

अदालत की इस फटकार का दिल्ली पुलिस पर कोई असर नहीं हुआ। वह जानती है कि राष्ट्र निर्माण के रास्ते में इस तरह के छींटे उसके दामन पर पड़ेंगे। वह इतनी मोतबर तो है ही कि इसे नजरंदाज कर दे। सो, नूपुर शर्मा सुरक्षित हैं। उनके खिलाफ शिकायत करनेवाले मोहम्मद ज़ुबैर को एक तिकड़म के सहारे जेल में डाल दिया गया है। देश की और अदालत की आत्मा बिल्कुल साफ है। भाजपा समर्थकों की आत्मा का फिलहाल पता नहीं।    

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
अपूर्वानंद
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

वक़्त-बेवक़्त से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें