loader
रुझान / नतीजे चुनाव 2024

झारखंड 81 / 81

इंडिया गठबंधन
51
एनडीए
29
अन्य
1

महाराष्ट्र 288 / 288

महायुति
221
एमवीए
55
अन्य
12

चुनाव में दिग्गज

कल्पना सोरेन
जेएमएम - गांडेय

पीछे

हेमंत सोरेन
जेएमएम - बरहेट

आगे

ग़ज़ा में इज़राइली हिंसा फौरन रुके! 

वाशिंगटन पोस्ट’ की खबर के मुताबिक़ इज़राइल फ़िलिस्तीन के ख़िलाफ़ अपने हमले को 5 रोज़ के लिए रोकने पर विचार कर रहा है। इसके बदले ‘हमास’ शायद 50 इज़राइलियों को रिहा करेगा जिन्हें उसके लड़ाकों ने 7 अक्तूबर को इज़राइल पर अपने हमले में बंधक बनाया था। इस खबर के पहले ‘वायर’ पर करण थापर को इंटरव्यू में दोहा से ‘हमास’ अंतरराष्ट्रीय मामलों के प्रमुख डॉक्टर मूसा अबूमरज़ूक़ ने भी यह कहा था कि 5 दिनों का  युद्ध विराम हो सकता है जिस वक़्त वह इज़राइल बंधकों में कुछ को रिहा करेगा और इज़राइल भी अपनी जेलों में बंद फ़िलिस्तीनियों में  कुछ को रिहा करेगा। 
‘वाशिंगटन पोस्ट’ की खबर से मालूम नहीं होता कि इन बंधकों के बदले इज़राइल अपनी जेलों में सालों से बन्द किए गए फिलिस्तीनियों में से कुछ को रिहा करने को राज़ी है या नहीं जिनमें 147 बच्चे भी हैं। ‘हमास’ की शर्त दोनों देशों के बंधकों की अदला-बदली की थी।
यह भी दिलचस्प विडंबना है कि इज़राइल की जेलों में बंद फ़िलिस्तीनियों को गिरफ़्तार बतलाकर एक तरह से कानूनी माना जाता है लेकिन ‘हमास’ की गिरफ़्त में जो इज़राइली हैं उन्हें बंधक कहा जाता है जिसकी क़ानूनी स्वीकृति नहीं है। इसलिए पूरी दुनिया ‘हमास’ के इस कृत्य को अस्वीकार्य मानती है लेकिन इज़राइल द्वारा फ़िलिस्तीनियों को गिरफ़्तार करने को उसका अधिकार मानती है।तो इज़राइलियों की रिहाई के लिए अंतरराष्ट्रीय दबाव है लेकिन फ़िलिस्तीनी क़ैदियों की आज़ादी किसी का मसला नहीं है। 
ताजा ख़बरें
इनकी रिहाई के लिए सिर्फ़ ‘हमास’ ही आवाज़ उठा रहा है। लेकिन उसे आतंकवादी ठहराकर उसकी किसी भी बात को अवैध माना जाता है।लेकिन अगर फ़िलिस्तीनियों के लिए और कोई कुछ न बोले तो क्या इसलिए ‘हमास’ को फ़िलिस्तीनी न सुनें कि वह ‘आतंकवादी’ है? 
अभी साफ़ नहीं कि फ़िलिस्तीनी रिहा होंगे या नहीं। फिर ‘हमास’ क्यों इस युद्ध विराम को तैयार है? इसलिए कि ग़ज़ा के लोगों का बचना ज़रूरी है। उन्हें पानी, बिजली, गैस, इंटरनेट मिलना ज़रूरी है। 13000 फ़िलिस्तीनियों के क़त्ल के बाद बचे ज़ख़्मी फ़िलिस्तीनियों का इलाज ज़रूरी है। लोगों को खाना, पानी मिलना ज़रूरी है। 

’हमास’ पर इल्ज़ाम है कि उसे ग़ज़ा के लोगों की कोई चिंता न थी वरना वह 7 अक्तूबर को इज़राइल पर हमला ही क्यों करता। लेकिन अभी अगर वह हिंसा रोकने के पक्ष में एक क़दम पीछे हट रहा है तो इसके पीछे ग़ज़ा के लोगों की फ़िक्र ही है। अभी एक रोज़ पहले तक इज़राइल ही नहीं, उसके सरपरस्त अमेरिका, इंग्लैंड, कनाडा, जर्मनी की सरकारें भी ग़ज़ा के लोगों के ख़िलाफ़ हिंसा रोकने के पक्ष में नहीं थीं।  


फिर युद्धविराम का यह फ़ैसला अगर होगा तो इसका श्रेय अमेरिका, यूरोप के नौजवानों को दिया जाना चाहिए जो इज़राइल के हमले के बाद से लगातार सड़कों पर हैं और अपनी सरकारों पर युद्धबंदी के लिए दबाव डाल रहे हैं। लाखों की तादाद में नौजवान लंदन, न्यूयार्क, टोरांटो, बर्लिन में फ़िलिस्तीनी झंडे लेकर इज़राइली हमले के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे हैं। वे रेलवे स्टेशनों,पुलों,चौराहों को जाम कर रहे हैं।अमरीका में डेमोक्रेटिक पार्टी के एक सम्मेलन के मंच पर प्रदर्शनकारियों ने क़ब्ज़ा कर लिया। वे अपने डेमोक्रेट प्रतिनिधियों पर लानत भेज रहे हैं कि उन्होंने युद्धबंदी के लिए आवाज़ नहीं उठाई है। यही हाल इंग्लैंड का है जहाँ उदार मानी जाने वाली लेबर पार्टी के मतदाता अपने प्रतिनिधियों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे हैं कि वे इज़राइल की इस जंग के ख़िलाफ़ स्टैंड लें। 

अमेरिका में इज़राइली लॉबी के दबाव में काम करने वाली सरकार इज़राइल की हिंसा की तरफ़दारी के कारण हर रोज़ पहले से कहीं अधिक अलोकप्रिय होती जा रही है। अगले राष्ट्रपति चुनाव में फिर सेदावेदारी करनेवाले जो बाइडेन के ख़िलाफ़ जनमत बड़ा होता जा रहा है।


विश्व जनमत के न्याय के पक्ष में टिके रहने के कारण इज़राइल के लिए भी अब मुश्किल हो रहा है कि वह हिंसा जारी रखे। ख़ुद इज़राइल में हज़ारों लोग सरकार के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। अभी एक लंबा मार्च जेरूसलम पहुँचा है। इज़राइल की ढेर सारी औरतें कह रही हैं कि इज़राइल की सरकार को ‘हमास’ द्वारा गिरफ़्तार इज़राइलियों की कोई परवाह नहीं है। वह ग़ज़ा पर जो अंधाधुंध बमबारी कर रही है, उससे ‘बंधक’ जोखिम में पड़ सकते हैं लेकिन सरकार इसके बारे में सोच भी नहीं रही है। 
इज़राइल की सरकार और प्रधानमंत्री नेतन्याहू  अपने देश के भीतर तेज़ी से जनसमर्थन गँवा रहे हैं। नेतन्याहू को भी समझ में आ रहा है कि 7 अक्तूबर के ‘हमास’ के हमले के बाद इज़राइल के पक्ष में जो सहानुभूति की लहर उठी थी, वह अब पिछले 44 दिनों से ग़ज़ा पर उसकी क्रूर बमबारी और उसमें मारे जाते फ़िलिस्तीनियों और ख़ासकर बच्चों की तस्वीरें देख देख कर उसके ख़िलाफ़ वितृष्णा और क्षोभ में बदल रही है। एक दिन पहले तक युद्धबंदी के किसी भी प्रस्ताव पर  पर टूट पड़ने वाले नेतन्याहू को कहना पड़  रहा है कि अगर ग़ज़ा में राहत नहीं पहुँची तो विश्व जनमत इज़राइल के ख़िलाफ़ हो जाएगा।असलियत यह है कि वह पहले ही इज़राइल के ख़िलाफ़ हो चुका है।
यह नामुमकिन है कि दुनिया ग़ज़ा को मलबे में बदलते, बच्चों को सीधे गोली मारे जाते, हस्पतालों पर बमबारी, आईसीयू के मरीजों की मौत को टीवी पर देखने के बाद इज़राइल की इस हिंसा पर चुप रहे। वह बोल रही है। जैसे जैसे दिन बीत रहे हैं, लोग यह देख और सुन रहे हैं कि इज़राइल का इरादा ‘हमास’ को कोई सबक़ सिखाना नहीं है बल्कि इस बहाने ग़ज़ा को पूरी तरह फ़िलिस्तीनियों से साफ़ कर देना है और उस पर क़ब्ज़ा कर लेना है।
इज़राइल के पक्षधरों के लिए भी इसराइल द्वारा ‘अल शिफ़ा’ हस्पताल की तबाही को उचित ठहराना अब असंभव हो रहा है। इज़राइल अब तक अपने इस दावे को साबित नहीं कर पाया है कि यह हस्पताल ‘हमास’ का नियंत्रण केंद्र था। उसने अपने दावे को सच बतलाने के लिए जो वीडियो प्रमाण जारी किए हैं, उन्हें उसके प्रति हमदर्दी रखने वाले मीडिया वाले, जैसे ‘बीबीसी’ और ‘न्यूयार्क टाइम्स’ या ‘सीएनएन’ भी पचा नहीं पा रहे हैं। उन्हें कहना पड़ा है कि इज़राइल अब तक पुख़्ता सबूत  पेश नहीं कर सका है कि हस्पताल का इस्तेमाल ‘हमास’ कर रहा था।फिर भी उसने हस्पताल को मलबे में बदल दिया है। सिर्फ़ 'अल शिफ़ा’ नहीं, दूसरे हस्पतालों को भी उसने तबाह कर दिया है। अभी जब मैं यह लिख रहा हूँ, खबर है कि इज़राइल ने संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा चलाए जा रहे स्कूलों पर बमबारी में 200 से ज़्यादा लोगों के मारे जाने की खबर है।

बार बार यह कहने के बाद कि वह ‘हमास’ को खोज रहा है जो उत्तरी ग़ज़ा में साधारण लोगों के बीच छिपा है और इसलिए उसके पास इसके अलावा कोई चारा नहीं है कि वह साधारण लोगों को मारे, अब इज़राइल कह रहा है कि ‘हमास’ दक्षिणी गजा में है। अब वह उसे ख़ान यूनिस में होने के दावे कर रहा है। पहले वह दक्षिणी ग़ज़ा को सुरक्षित इलाक़ा बतला रहा था। अब वह उसे भी निशाना बना रहा है। फिर आख़िर ग़ज़ा के लोग कहाँ जाएँ?


इज़राइल इसके जवाब में अब यह बेशर्मी से कह रहा है कि वे कहाँ जाएँ, इससे उसे कोई लेना देना नहीं। वह बस ग़ज़ा को दख़ल करना चाहता है। वह हस्पतालों पर, क़ब्रिस्तानों पर जिस तरह अपने झंडे गाड़रहा है, उससे साफ़  है कि वह सिर्फ़ अपना क्षेत्र विस्तार करना चाहता है।  
इस तबाही और क़त्लेआम की तस्वीरों को देखने और इज़राइल के बार बार बदलते स्टैंड को सुनने के बाद इज़राइल की हिंसा का समर्थन करने का मतलब है अपनी आत्मा का गला घोंट देना। 
बोलने वालों में बड़ी संख्या में यहूदी भी शामिल हैं। इसलिए इज़राइल की फ़िलिस्तीनियों पर हिंसा के ख़िलाफ़ बोलने वालों को यहूदी विरोधी कहकर हर विरोध को ख़ारिज कर देना अब मुमकिन नहीं। लोग देख रहे हैं और इज़राइल के मंत्रियों और नेताओं के बयानों से साफ़ है वे चाहते हैं कि ग़ज़ा से सारे फ़िलिस्तीनी भगा दिए जाएँ और युद्ध के बाद भी वे वापस न लौटें। यह सब कुछ देखने और सुनने केबाद  इज़राइल की हिंसा के पक्ष में खड़ा रहना पश्चिम की सरकारों के लिए भी मुश्किल होता जा रहा है।
तो यह न तो बाइडेन और सुनाक की मानवीयता है और न नेतन्याहू की दयानतदारी कि वे 5 रोज़ केलिए हिंसा रोकने को सोच रहे हैं। यह किसी भी तरह हिंसा के पक्ष में समर्थन वापस लाने की बदहवास कोशिश है। 
वक़्त-बेवक़्त से और खबरें
जो भी हो, कारण कोई भी हो, जितनी जल्दी हो, इज़राइली हिंसा का तुरंत रुकना ज़रूरी है। यह क्यों ज़रूरी है यह आज एक फ़िलिस्तीनी की एक पोस्ट को पढ़कर समझा जा सकता है: ‘मेरे परिवार के 36 लोग कल मारे गए। अगर कल युद्ध रुक गया होता तो वे जीवित रहते।’  ग़ज़ा के हर परिवार की यही कहानी है। हर 200 में 1 व्यक्ति मार डाला गया है। हर मिनट कोई मारा जा रहा है। हर 10 मिनट पर एक बच्चे का खून हो रहा है। इस नस्लकुशी का बोझ लेकर दुनिया का कारोबार चलना मुश्किल है।   
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
अपूर्वानंद
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

वक़्त-बेवक़्त से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें