आज 31 अक्टूबर है। इंदिरा गाँधी की हत्या का दिन? या सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्मदिन? या भारत में सिखों के क़त्लेआम की शुरुआत का दिन? किस तरह इसे याद किया जाए? आज की संघीय सरकार ने इसे एकता दिवस के रूप में मनाना शुरू किया है। लेकिन इस एकता का संदर्भ औपनिवेशिक शासन से मुक्ति के बाद भारत में रियासतों के एकीकरण से है। भारत के भौगोलिक नक़्शे से है। उसका रिश्ता भारत के लोगों के बीच एकता से नहीं है। यह सरकार, जो 14 अगस्त को विभाजन दिवस के तौर पर याद करना चाहती है ताकि लोग विभाजन की विभीषिका को न भूलें, वह 31 अक्टूबर को सिखों के क़त्लेआम के दिन के तौर पर याद नहीं करना चाहती। वह उपयोगी नहीं है।
31 अक्टूबर, क्या आत्म निरीक्षण का दिन होगा?
- वक़्त-बेवक़्त
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- 31 Oct, 2022

31 अक्टूबर को कैसे याद किया जाए? सामूहिक हिंसा, हत्या को मात्र एक हादसा मानकर आगे बढ़ जाए? या फिर इस पर आत्मनिरीक्षण किया जाए?
आज के अख़बारों को पलट गया। इस तारीख़ के मौक़े पर इस विभीषिका की याद दिलाने का काम किसी को ज़रूरी नहीं लगा। आख़िर यह आज़ाद भारत में किसी एक धार्मिक समुदाय के ख़िलाफ़ पूरे देश में की गई हिंसा से जुड़ा दिन है! इसे हम क्यों भूल जाना चाहते हैं? यह हिंसा समाज के एक वर्ग ने उस समुदाय के ख़िलाफ़ की जिसे वे अपना रक्षक कहते आए थे। सिख धर्म हिंदू धर्म की ही शाखा है, यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तो कहता ही है, अधिकतर हिंदू भी यही मानते हुए बड़े होते हैं। फिर अपने ही लोगों के ख़िलाफ़ हिंसा क्यों?