राष्ट्र ख़ुद को खोते हैं। फिर हासिल भी करते हैं। ख़ुद को खो देने के बाद वापस पाना इतना आसान नहीं। क्योंकि राष्ट्र भूल भी जाते हैं कि वे कौन थे और क्या थे। या क्या बनना चाहते थे!
कालों के रोष प्रदर्शन की प्रतिक्रिया में गोरों का जवाबी प्रदर्शन क्यों नहीं?
- वक़्त-बेवक़्त
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- 8 Jun, 2020

एक गोरा पुलिस अधिकारी एक ग़रीब काले की गर्दन को अपने घुटने से दबाता चला जाता है, अपने पेशे का अधिकार मानकर, उसकी घुटी चीख़ों को अनसुना करते हुए और उसके साथी अधिकारी ऐसा करने में उसे बाधा न हो, इसलिए घेरा देकर खड़े रहते हैं, यह चित्र अमेरिका की आत्मछवि पर एक कलंक है।
इतिहास में इसके उदाहरण हैं कि अपनेआप को श्रेष्ठ मूल्यों का वाहक समझने वाले राष्ट्र उन मूल्यों को न सिर्फ़ भूल जाते हैं, बल्कि कई बार उन्हें कुचलने में उन्हें आनंद आने लगता है। अगर उन्हें उन मूल्यों की याद दिलाई जाए तो वे ख़फ़ा हो उठते हैं और याद दिलानेवाले को ही मार डालते हैं क्योंकि वह उनके आनंद को बाधित करता है और उन्हें बताता है कि यह आनंद एक ख़तरनाक नशा है, यह आख़िरकार उनकी आत्मा को पंगु कर देगा। आत्मा के बारे में भी ग़लतफ़हमी है कि वह हर किसी में होती है और ख़ुद ब ख़ुद सक्रिय रहती है। आत्मा को जगाने के लिए या जगाए रखने के लिए लगातार अभ्यास की आवश्यकता होती है। इसके लिए निजी और सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता होती है।