गीता कोड़ा
बीजेपी - जगन्नाथपुर
पीछे
गीता कोड़ा
बीजेपी - जगन्नाथपुर
पीछे
चंपाई सोरेन
बीजेपी - सरायकेला
आगे
अमेरिका के विस्कॉन्सिन में केनोशा के एक मुक़दमे और उसके फ़ैसले ने अमेरिका के नस्ली विभाजन को और चौड़ा और गहरा कर दिया है। पिछले साल शहर में हुए नस्लभेद विरोधी प्रदर्शन के दौरान दो लोगों की हत्या के अभियुक्त एक श्वेत किशोर काइल रिटेनहॉउस को अदालत ने दोषमुक्त मानकर रिहा कर दिया है। पिछले साल केनोशा में नस्लवाद विरोधी प्रदर्शन हुए थे।
यह याद रखना ज़रूरी है कि ये प्रदर्शन एक काले व्यक्ति जैकब ब्लैक को पुलिस के द्वारा पीठ में गोली मार देने के बाद हुए थे। जैसा क्रोध में होता है, इस प्रदर्शन में हिंसा भी हुई। लेकिन हिंसा का मतलब आगजनी, तोड़फोड़ थी।
प्रदर्शनकारियों ने किसी व्यक्ति पर हमला नहीं किया, किसी की हत्या नहीं की। लेकिन उनपर रिटेनहॉउस जैसे लोगों ने, जो न पुलिस हैं, न राज्य के प्रतिनिधि, हमला ज़रूर किया।
उस वक्त शहर की रक्षा के नामपर कई लोग हथियार लेकर प्रदर्शन के ख़िलाफ़ सड़क पर उतर आए। कई लोगों ने फेसबुक और दूसरे माध्यमों से प्रदर्शन के विरुद्ध लोगों को जमा करना शुरू किया। 17 साल का रिटेनहॉउस केनोशा से 20 मील दूर रहता है। लेकिन उसे उसकी माँ ड्राइव करके केनोशा ले गई। वह हथियार के साथ घर से निकला था। प्रदर्शन में शामिल लोगों पर उसने गोली चलाई। दो लोग मारे गए और कुछ घायल हुए।
रिटेनहॉउस पर मुक़दमा चला। जाहिरा तौर पर इस मुक़दमे पर अमेरिका भर की आँख लगी हुई थी। अदालत के न्यायाधीश श्रोडर के रुख से स्पष्ट था कि उनकी सहानुभूति रिटेनहॉउस के प्रति थी। वे मारे गए लोगों को हिंसा का शिकार तक कहने की इजाजत देने को तैयार न थे।
जबकि बचाव पक्ष यानी रिटेनहॉउस के वकील ने प्रदर्शनकारियों को लुटेरे, बलवाई कहा और श्रोडर ने इसकी अनुमति दी। उन्होंने अपना पक्षपात छिपाया नहीं। मुक़दमे की दिशा साफ़ थी फिर भी आख़िरी फ़ैसले से अमेरिका में तीखी प्रतिक्रिया हुई।
शहर में फिर से विरोध प्रदर्शन हुए हैं और उनमें हिंसा भी हुई है। राजनेताओं में भी साफ़ दो विरोधी हिस्से दीख रहे हैं। पूर्व राष्ट्रपति ट्रम्प ने फ़ैसले का समर्थन किया है और रिटेनहॉउस को बधाई तक दी है।
कुछ कट्टर राजनेताओं ने लोगों को हथियार रखने और खतरनाक बने रहने के लिए कहा है। विस्कॉन्सिन के गवर्नर ने निराशा और क्षोभ व्यक्त किया है और पूछा है कि आखिर रिटेनहॉउस को 20 मील दूर से वहां जाने की क्या बाध्यता थी।
मुक़दमा ठीक से लड़ा गया या नहीं, इसपर बहस है। लेकिन इस फ़ैसले के निहितार्थ गंभीर हैं। यह ठीक ही कहा गया कि अगर रिटेनहॉउस श्वेत न होता तो फ़ैसला ठीक उलटा होना तय था।
अमेरिका में नस्लवाद उसकी संरचना में है। जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या के बाद पुलिस अधिकारी को सजा के बाद और अमेरिका में फ्लॉयड के प्रति एकजुटता के प्रदर्शन के बाद इस फ़ैसले ने बतला दिया है कि अमेरिका को बराबरी पर आधारित नस्लवाद मुक्त देश या समाज बनने में अभी काफी जद्दोजहद करनी है।
इस फ़ैसले का एक दूसरा मतलब भी है। ठीक ही ध्यान दिलाया गया है कि अब सरकार, सत्ता का विरोध करने के लिए सड़क पर आनेवालों को पुलिस का सामना करने के साथ हिंसक भीड़ के हमले का सामना करने को भी तैयार रहना होगा।
गार्डियन अखबार में का मड ने बतलाया है कि 25 मई 2020 को जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या से लेकर सितंबर, 2021 तक विभिन्न विरोध प्रदर्शनों पर कोई 139 बार गाड़ियाँ चढ़ाई गईं। तकरीबन 100 लोग घायल हुए। रिपब्लिकन पार्टी के नेता ऐसा कानून बनाना चाहते थे, जिससे ऐसी गाड़ियों के ड्राइवर कानूनी कार्रवाई से सुरक्षित रहें। इस सूचना से आपको भारत में लखीमपुर खीरी में किसानों पर एक मंत्री के बेटे की गाड़ी चढ़ाने की याद हो आई होगी।
सरकार के ख़िलाफ़ अगर लोग होते हैं तो पक्ष में भी। लेकिन आम तौर पर विरोध सत्ता के ख़िलाफ़ होता है। सत्ता के पास अपने विरोध को काबू करने या उसका दमन करने के हिंसक साधन हैं। वह उनका इस्तेमाल भी करती है। प्रायः सत्ता की हिंसा को आलोचना का सामना करना पड़ता है। पुलिस की गोली से कोई मरे या घायल हो, पुलिस को कठघरे में खड़ा होना पड़ता है। इसकी जगह अगर रिटेनहॉउस जैसे लोग हिंसा करें तो उस हिंसा के पक्ष में कई लोग तर्क देने को तैयार हो जाएँगे। आखिरकार रिटेनहॉउस के मुक़दमे के लिए हजारों लोगों ने चंदा किया ही था।
तो यह किया ही जा सकता है कि जनता के प्रदर्शन के ख़िलाफ़ अब दूसरी जनता को इकट्ठा किया जा सकता है। वह जनता जब हिंसा करेगी तो राज्य भी उसके पक्ष में खड़ा हो जाएगा।
सड़क पर निकल कर विरोध करने के लिए साहस चाहिए। रूस हो या चीन या अमेरिका या भारत, सड़क पर उतरने का मतलब सत्ता की हिंसा के लिए तैयार रहना है। उसके साथ अगर 'जनता' भी पुलिस के साथ मिल जाए तो प्रतिरोध करनेवालों को दोहरी हिंसा का सामना करना पड़ेगा।
अमेरिका में ऐसे मौके बार-बार आएँगे कि काले लोगों को सड़क पर उतरना पड़े। क्योंकि उनके ख़िलाफ़ आम तौर पर हिंसा होती है। अब यह किया जा सकता है कि उनके ख़िलाफ़ हथियारबंद लोगों को शहर की रक्षा के नाम पर गोलबंद किया जाए।
भारत में हमने पिछले साल यह देखा। दिल्ली में नागरिकता के कानून के ख़िलाफ़ आंदोलन के ख़िलाफ़ भारतीय जनता पार्टी ने भीड़ इकठ्ठा की और उस भीड़ ने आंदोलनकारियों पर हमला किया। वह शहर की सड़क खाली कराने के नाम पर किया गया। पुलिस ने इस हिंसा को अपराध नहीं माना और न अदालत ने। उसके बाद किसानों के आंदोलन पर भी बार-बार हमले किए गए। यह सब कुछ शहर के लोगों के अधिकारों को प्रदर्शनकारियों से बचाने के नाम पर किया गया।
उत्तर प्रदेश में आंदोलनकारियों में 22 लोग मारे गए लेकिन पुलिस ने कहा कि गोली उसकी न थी। दिल्ली में हमने यह नारा भी सुना, "दिल्ली पुलिस लट्ठ बजाओ, हम तुम्हारे साथ हैं।" एक बार 'जनता' को ही जनता के सामने खड़ा कर दिया जाए तो सरकार का काम आसान हो जाता है।
उसी तरह अभी गुड़गांव में मुसलमानों के ख़िलाफ़ 'नागरिक' सड़क पर उतरकर हिंसा कर रहे हैं। लेकिन इसे उनके द्वारा सार्वजनिक संपत्ति की गरिमा की रक्षा का कार्य बतलाया जा रहा है। सरकार हमलावरों से वार्ता कर रही है।
काइल रिटेनहॉउस के मुक़दमे को इसीलिए पूरी दुनिया में और भारत में ध्यान से पढ़ा जाना चाहिए क्योंकि जन-रोष के दमन का एक कारगर तरीका सत्ता ने हासिल कर लिया लगता है।
About Us । Mission Statement । Board of Directors । Editorial Board | Satya Hindi Editorial Standards
Grievance Redressal । Terms of use । Privacy Policy
अपनी राय बतायें