चार राज्यों के चुनाव नतीजों से एक बार यह बात फिर साफ़ हो गई है कि हिंदी भाषी इलाक़ों में हिंदुत्व का आधार न सिर्फ़ बना हुआ है, बल्कि पहले से अधिक मज़बूत हुआ है। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी की निर्णायक जीत को हिंदुत्व की राजनीति की जीत कहना ग़लत न होगा। इन राज्यों में भाजपा ने न सिर्फ़ नरेंद्र मोदी को सामने रखकर चुनाव लड़ा बल्कि अपने कट्टर हिंदुत्ववाद के लिए जनमत माँगा। मोदी से लेकर मुख्य भाजपा नेताओं के भाषणों को सरसरी तौर पर देखने से ही ज़ाहिर हो जाता है कि वे मात्र ‘जनकल्याणकारी’ योजनाओं के सहारे नहीं, मुसलमान विरोधी राजनीति के लिए वोट माँग रहे थे। असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने भाजपा के मुख्य प्रचारक के तौर पर खुलेआम मुसलमानों के प्रति घृणा फैलानेवाले भाषण दिए और यही बाक़ी नेताओं ने भी किया। ख़ुद नरेंद्र मोदी ने ख़ुद को सनातन धर्म का रक्षक घोषित करते हुए मतदाताओं से ‘सनातन धर्म की विरोधी’ कॉंग्रेस पार्टी को सबक़ सिखलाने का आह्वान किया। और इसमें मोदी को सफलता मिली। नरेंद्र मोदी ने राजस्थान में खुला सांप्रदायिक प्रचार किया। इसपर मीडिया ने पर्दा डाला लेकिन इसका असर तो हुआ। कन्हैयालाल की हत्या का इस्तेमाल नरेंद्र मोदी ने यह साबित करने में किया कि कॉंग्रेस मुसलमान परस्त पार्टी है। यह घृणित प्रचार था लेकिन मोदी को दुष्प्रचार करने की पूरी छूट मीडिया ने दे रखी है।
ख़ुद कॉंग्रेस कर रही थी भाजपा के लिए हिंदुत्व का प्रचार!
- वक़्त-बेवक़्त
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- 4 Dec, 2023

कॉंग्रेस की विचारधारात्मक अस्पष्टता से उसके मतदाताओं में भी भ्रम बढ़ता है। भले ही राहुल गाँधी कहते रहें कि कॉंग्रेस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से विचारधारात्मक संघर्ष कर रही है, ज़मीन पर उनकी पार्टी का व्यवहार इस बात में विश्वास नहीं पैदा करता।