'राम, राम!' सुबह की सैर में यूनिवर्सिटी रोड पर विश्वविद्यालय के मुख्य दफ़्तर के द्वार के पास एक कसरती बदन नौजवान के बगल से गुजरा तो उसने लगभग होठों में ही यह अभिवादन किया। अस्फुट लेकिन मेरे कानों ने उसे पकड़ लिया। 'राम, राम', मैंने उत्तर दिया। आगे रामजस कॉलेज के पास पहुँचा तो एक सफाईकर्मी महिला सामने से आती दीखी। चेहरे पर अकारण लेकिन कितनी स्वाभाविक मुस्कुराहट।