आज़ादी के पहले ही, चालीस के दशक में भारत भीषण अकाल झेल चुका था। करोड़ों भारतीयों की मौत औपनिवेशिक नीतियों के चलते आए अकालों के कारण हो चुकी थी। इसके बाद जब 15 अगस्त 1947 को देश आज़ाद हुआ तो देश को दो महत्वपूर्ण चुनौतियों से लड़ना था। आज़ाद भारत की पहली चुनौती थी, 200 सालों की ग़ुलामी से उत्पन्न हुए ‘आर्थिक शोषण’ से निपटना और दूसरी चुनौती थी देश की उन विभाजनकारी ताक़तों से लड़ना जो भारत के विभाजन के साथ-साथ राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या के भी ज़िम्मेदार थे।
कृषि आय तो दोगुनी नहीं हुई, चार गुनी हो गयी यति नरसिंहानन्दों की संख्या!
- विमर्श
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- 10 Apr, 2022

देश को विकास पथ पर लाने के लिए नरसिंहानंदों को नहीं सिंचित क्षेत्रों को दोगुना और तिगुना करना होता है। लेकिन क्या ऐसा हुआ? क्या ऐसी बढ़ोतरी नफ़रती भाषणों में नहीं हुई है?
आर्थिक चुनौतियों में ही गुँथी हुई एक बड़ी चुनौती थी कि करोड़ों भारतीयों को खाना कैसे खिलाया जाए। देश में न पर्याप्त अवसंरचनाओं का विकास हुआ था और न ही आर्थिक हालत ठीक थी। आज़ादी की आशाएँ, आँखें खोले भारत की पहली सरकार से हर उस सपने का वादा चाहती थीं जो उन्हें औपनिवेशिक ग़ुलामी में कभी नसीब नहीं हुए थे। अंग्रेजों द्वारा किया गया शोषण कितना ख़तरनाक था यह इस बात से ही समझा जा सकता है कि जहाँ मुगल काल में (1700 AD) दुनिया की जीडीपी में भारत की हिस्सेदारी लगभग 25% थी वहीं 1950 में घटकर यह लगभग 4% ही रह गई।