केशवानंद भारती मामले में सुनवाई के दौरान जब सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि संविधान के कुछ प्रावधान संविधान के मूल ढांचे से जुड़े हुए हैं और बिना इनके संविधान की मूल भावना ही खत्म हो सकती है तब तत्कालीन अटॉर्नी जनरल नीरेन डे का तर्क यह था कि ‘संविधान के सभी प्रावधान जरूरी हैं अन्यथा इन्हे संविधान में जगह न दी जाती’।
अटॉर्नी जनरल का यह तर्क निश्चित रूप से सतही था। इस बातचीत का जिक्र तत्कालीन भारत के मुख्य न्यायधीश एस. एम. सीकरी ने केशवानंद भारती मामले के अपने निर्णय में भी किया है। 700 पन्नों के इस निर्णय के पैराग्राफ 302 में न्यायमूर्ति सीकरी ने अटॉर्नी जनरल की बात का जवाब देते हुए लिखा कि “यह सही है कि संविधान के सभी प्रावधान जरूरी हैं लेकिन सिर्फ इतनी बात से संविधान के सभी प्रावधानों की अहमियत एक नहीं हो जाती और न ही उन सभी को एक ही धरातल पर रखा जा सकता है। वास्तविकता तो यह है कि संविधान के सभी प्रावधानों को संशोधित किया जा सकता है बशर्ते संविधान का मूल आधार और ढाँचा न बदले।” जस्टिस सीकरी केशवानंद भारती मामले में बनी अब तक की सबसे बड़ी संविधान पीठ, 13 सदस्यीय, की अध्यक्षता कर रहे थे।
संविधान के मू़ल ढाँचे पर हमला किस मंशा से?
- विमर्श
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- 15 Jan, 2023

देश के संविधान पर उपराष्ट्रपति से लेकर भारत के कानून मंत्री तक टिप्पणी कर रहे हैं। लेकिन हाल ही में उपराष्ट्रपति का बयान या हमला गंभीरता से लिया जाना चाहिए। आखिर सरकार की मंशा क्या है। जानी-मानी पत्रकार वंदिता मिश्रा ने उपराष्ट्रपति के बयान से जारी विवाद के संदर्भ में सभी पहलुओं को समझाने की कोशिश की है।