भारत के संविधान का अनुच्छेद-163(1) बिल्कुल साफ शब्दों में यह घोषणा करता है कि- राज्यपाल को उसके अन्य सभी कार्यों में (विवेकाधीन शक्तियों के अतिरिक्त) सहायता करने और सलाह देने के लिए मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में एक मंत्रिपरिषद अस्तित्व में रहेगी। शमशेर सिंह बनाम पंजाब राज्य(1974) की सात सदस्यीय पीठ द्वारा दिए गए निर्णय के अनुसार- राज्यपाल कुछ असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर अपने मंत्रियों की सलाह के अनुसार ही अपनी औपचारिक संवैधानिक शक्तियों का प्रयोग करेंगे। इस निर्णय में, विधानसभा की परंपरा में और संविधान की मूल भावना में यह भी सन्निहित है कि राज्यपाल द्वारा अनुच्छेद-176 के अनुपालन में दिया गया अभिभाषण राज्य की मंत्रिपरिषद द्वारा ही तैयार किया जाएगा। राज्यपाल का दायित्व है कि वह तैयार किए गए अभिभाषण को शब्दशः वैसा ही पढ़े जैसा उसे दिया गया है जबतक कि उसमें ऐसा कुछ न लिखा हो जो संविधान की मूल भावना और राष्ट्रीय एकता को चोट पहुंचाने वाला हो।
राज्यपाल कहीं देश में अस्थिरता का कारण न बन जाएं
- विमर्श
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- 29 Mar, 2025

तमिलनाडु के मौजूदा राज्यपाल आर एन रवि ने हाल ही में जो विवाद खड़ा किया, उसने इस पद की गरिमा को जबरदस्त ठेस पहुंचाई है। ताज्जुब है कि क्या बीजेपी ने ऐसे ही लोगों को राज्यपाल के पद के लिए चुना है जो संविधान की भावना और मर्यादा को तार-तार करते रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार वंदिता मिश्रा का यह लेख तमाम सवालों को उठाता हुआः