नोएडा में सुपरटेक के 32 मंजिलों तक बने दो गगनचुंबी टावरों को ढहाने का आदेश तो हो गया, लेकिन इसे ढहाया कैसे जाएगा? इन टावरों के आसपास कई कॉम्पलेक्स हैं, 60 फीट वाली मुख्य सड़क है, पार्क है और पेड़ पौधे भी हैं। इन टावरों के सबसे क़रीब सिर्फ़ 9 मीटर की दूरी पर ही दूसरा कॉम्पलेक्स है। इतनी भीड़भाड़ वाली जगह पर क्या बिना किसी नुक़सान के इसको ढहाना संभव है? आप यह जानकर चौंक जाएँगे कि यह बिल्कुल संभव है। कुछ मिनटों में ही दोनों टावर ध्वस्त हो सकते हैं। वो कहते हैं न, पलक झपकते ही ग़ायब हो जाना! किसी फ़िल्मी दृश्य की तरह!
कुछ मिनटों में ध्वस्त करना क्या इतना आसान है? क्या देश में कभी ऐसा हुआ है कि ऐसी गगनचुंबी इमारत ध्वस्त हुई हो? क्या भारत में ऐसी विशेषज्ञता है?
ऐसी गगनचुंबी इमारतों को बिना आसपास क्षति पहुँचाए ध्वस्त करने के क्या-क्या तरीक़े हैं, यह जानने से पहले यह जान लें कि आख़िर सुपरटेक के दोनों टावरों को ध्वस्त क्यों किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को आदेश दिया है कि नोएडा में सुपरटेक के दो टावर को ध्वस्त कर दिया जाए। ये दोनों टावरों में 40-40 मंजिलें प्रस्तावित थीं। इनमें 32-32 मंजिलें बन चुकी थीं। फ़्लैट बनाने का काम करने वाली सुपरटेक ने इन दोनों टावर में 900 से ज़्यादा फ़्लैट बनाए थे। सुप्रीम कोर्ट ने यह फ़ैसला निर्माण से संबंधित क़ानूनों के उल्लंघन पर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि टावरों को ढहाने का काम तीन महीने के अंदर हो जाना चाहिए।
लेकिन दिक्कत है कि देश में हाल ही में गगनचुंबी इमारतें बननी शुरू हुई हैं। ऐसी इमारतों को ध्वस्त करने में विशेषज्ञता या शोध देश में बहुत कम है। इसीलिए माना जा रहा है कि आसपास के भवनों की वजह से टावरों को ढहाना एक कड़ी चुनौती होगी। इसीलिए शीर्ष अदालत ने कहा है कि सुरक्षित ढंग से विध्वंस का कार्य केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान यानी सीबीआरआई द्वारा किया जाएगा। यदि सीबीआरआई मना करता है तो एक नया प्राधिकरण नियुक्त किया जाएगा।
अब सीबीआरआई इन टावरों को ध्वस्त करने का क्या तरीक़ा अपनाएगा? सीबीआरआई ने तो अभी तक यह साफ़ नहीं किया है, लेकिन इसके लिए कई तकनीक लोकप्रिय हैं।
इंप्लोजन यानी अंतर्मुखी विस्फोट
घनी आबादी वाले शहरी क्षेत्रों में इमारतों के विध्वंस के लिए सबसे आम तरीक़ा इमारत में कई प्वाइंट पर विस्फोटक लगाने का है। इसमें दीवारों में छेद करके छोटे-छोटे विस्फोटक लगाए जाते हैं। सावधानी से किए गए एक साथ विस्फोट के बाद इमारत का मलबा इमारत के अंदरुनी हिस्से में ही गिरता है। कुछ मिनटों में पूरी इमारत परिसर में ही ध्वस्त हो जाती है।
- इसके लिए काफ़ी तैयारी की ज़रूरत होती है। इसमें महीनों लग सकते हैं। विशेषज्ञों द्वारा टावर की संरचना और उसके लेआउट का सर्वे किया जाता है।
- हर मंजिल पर विस्फोटक लगाने की योजना बनाई जाती है। विस्फोटक ऐसी जगहों पर लगाए जाते हैं जिससे टावर को मज़बूती देने वाले खंभों को ध्वस्त किया जा सके।
- 50-100 मीटर के दायरे में पूरी आबादी को खाली करा लिया जाता है जिससे किसी अनपेक्षित घटना होने पर जान-माल का नुक़सान नहीं हो।
- सभी विस्फोटकों को एक साथ धमाका किया जाता है। विस्फोट अंदर की ओर होता है और मलबा टावर परिसर में ही गिरता है। बाद में मलबे को हटा लिया जाता है।
दूसरी तकनीक
- रेकिंग बॉल यानी विध्वंसक बॉल का तरीक़ा इमारतों को तोड़ने के सबसे पुराने तरीकों में से एक है। विध्वंस की इस प्रक्रिया में एक भारी गेंद को बार-बार स्विंग करना होता है और इसको इमारत से टकराना पड़ता है। इससे बहुत अधिक कंपन व शोर होता और धूल भी उड़ती है।
- हाई रीच आर्म- यह ऊँची इमारतों को ध्वस्त करने के लिए तरीक़ा अपनाया जाता है। इसे आम तौर पर 66 फीट से अधिक ऊंचाई वाली इमारतों के लिए उपयोग किया जाता है। इसमें एक मशीन लगाई जाती है और इसमें इमारत को ढहाने वाले औजार लगे होते हैं।
- बुलडोजर और हथौड़ा का तरीक़ा भी इस्तेमाल किया जाता है। इसमें एक-एक मंजिल को तोड़ा जाता है, लेकिन इसमें काफ़ी वक़्त और श्रम लगता है।
इन सभी तरीक़ों में मौजूदा समय में इंप्लोजन यानी अंतर्मुखी विस्फोट का तरीक़ा काफ़ी प्रचलित है। इसके लिए भले ही तैयारी में समय लगता है, लेकिन यह काफ़ी आसान तरीक़ा है। कुछ ही मिनटों में पूरी बिल्डिंग ध्वस्त हो जाती है।
दुनिया में प्रचलित तकनीक
दुनिया भर में ऐसी गगनचुंबी इमारतों को ध्वस्त करने के लिए भी वही तरीक़ा अपनाया जाता है। पिछले साल ही न्यूयॉर्क की सिंगर बिल्डिंग, जो 187 मीटर ऊँची थी और जिसमें 47 मंजिलें थीं, उसको भी उस तकनीक से ढहाया गया था कि आसपास कोई नुक़सान नहीं पहुँचा था। उस टावर के 10 मीटर की गोलाई में ही पूरी बिल्डिंग ध्वस्त हो गई थी। दुनिया भर में इंप्लोजन तकनीक से अब तक ऐसी सैकड़ों इमारतें ढहाई जा चुकी हैं।
केरल में 18 मंजिला टावर ढहाया था
भारत में भी ऐसी ही एक गगनचुंबी इमारत ढहाई गई थी। पिछले साल ही। केरल के मराडु का यह मामला था। इस मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने ही निर्देश दिया था। वह टावर पर्यावरणीय नियमों की अनदेखी कर बनाया गया था। उस टावर में 18 मंजिलें थीं। इसको ढहाने के लिए 960 छेद किए गए थे और उसमें 15 किलोग्राम विस्फोटक का इस्तेमाल हुआ था। जब विस्फोट किया गया था तो बिल्डिंग के अहाते में ही पूरा हिस्सा ध्वस्त हो गया था। आसपास की इमारतें, आंगनबाड़ी केंद्र, पेड़-पौधे और दूसरी किसी भी चीज को नुक़सान नहीं पहुँचा था।
अब नोएडा के दो टावरों की बारी है। अभी तक सीबीआरआई ने साफ़ नहीं किया है कि वह उन टावरों को कैसे ध्वस्त करेगा, लेकिन बहुत संभव है कि इंप्लोजन का तरीक़ा अपनाया जाएगा।
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