मीर तकी 'मीर' हमारे सबसे पसंदीदा शायर हैं। उनके एक एक शेर को मैं हज़ार हज़ार बार पढ़ सकता हूं।
'तुम ही उस्ताद नहीं हो ग़ालिब, कहते हैं अगले ज़माने में कोई मीर भी था'
- विविध
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- 20 Sep, 2023

शायर मीर तक़ी मीर का 1810 में आज ही के दिन यानी 20 सितंबर को निधन हुआ था। मीर वो शायर जिसके शेर सुनकर ग़ालिब जैसा बड़ा शायर भी दंग रह जाता था। जानें मीर तक़ी मीर के बारे में।
'ज़िक्र ए मीर' के फोरवर्ड में मीर लिखते हैं:-
'यह फ़कीर मीर मोहम्मद तकी जो 'मीर' के नाम से जाना जाता है कहता है कि मैं इनदिनों बेकार था और सबसे अलग थलग एक कोने में पड़ा हुआ था। इन्हीं दिनों ये आपबीती जिसमें जग बीती और क़िस्से कहानियां भी आ गई हैं, लिख डाली और ये क़िताब जिसका नाम ' ज़िक्रे मीर' है रक़म की। दोस्तों से उम्मीद है कि अगर कोई ग़लती पाएं तो नज़र चुरा लें और ठीक कर दें!
'मीर' का तस्सवुर है कि , 'न कोई मुसलमान है, ना कोई हिंदू है, ना कोई मोमिन है और ना कोई काफ़िर! इंसान बस इंसान है और वजूद ख़ुदाबंद की परछाईं!'
'मीर' शायद पहले शायर थे जिन्होंने अपनी आपबीती 'ज़िक्र ए मीर' लिखी। इससे पहले किसी और शायर की आपबीती का कोई डॉक्यूमेंट नहीं है। मीर के दौर में फ़ारसी दरबार की ज़ुबान थी तो मीर ने 'ज़िक्रे मीर ' भी फ़ारसी में ही लिखी। उस दौर में प्रिंटिंग तो थी नहीं लिहाज़ा लोग अपनी राइटिंग्स या क़िताबों की नक़ल करवा लेते थे। मीर की 'ज़िक्रे मीर' की भी कई नक़ल हुई होंगी लेकिन वो बड़े ज़माने तक लोगों की अलमारियों में दबी पड़ी रहीं। किसी को इल्म ही नहीं था कि उनके पास एक बेशक़ीमती क़िताब है सिवाए एक डॉक्टर इशप्रिंगर के। इटावा के ख़ान बहादुर मौलवी बशीरुद्दीन के हाथ ये नक़ल 1921 में लगी जिसे मौलवी अब्दुल हक़ ने 1928 में अपने फोरवर्ड के साथ छपवाया।