बात 1999 की जनवरी के पहले हफ्ते की रही होगी जब सुबह सुबह लखनऊ दूरदर्शन में डायरेक्टर कुलभूषण का फ़ोन आया कि, ‘यार एक इंटरव्यू करवाना है सोचा पहले तुमसे बात कर लें!’ हमने कहा, ‘ कुलभूषण जी आप केन्द्र के निदेशक हैं जिसका चाहें इंटरव्यू करवा लें! इसमें पूछने की क्या बात है?’ कुलभूषण बोले, ‘ यार दफ़्तर में तुम्हारे अलावा किसी की परवाह नहीं है इसलिए पूछ रहे हैं! तुम रिएक्ट बहौत जल्दी करते हो! हालांकि ठीक रिएक्ट करते हो!’ हमने पूछा, ‘ किसका इंटरव्यू होना है?’ बोले, ‘ सुब्रत राय सहारा का!’ हमने कहा, ‘ सुब्रत राय ने ऐसा क्या किया?’ कुलभूषण बोले, ‘ अरे यार पी.आर. इंटरव्यू है। कभी कभी तो डायरेक्टर की भी चलनी चाहिए!’ हमने कहा, ‘ठीक है किसी जर्नलिस्ट से करवा लीजिए‘। कुलभूषण बोले, ‘ सुब्रत राय का इंटरव्यू करने के लिए तो लखनऊ से दिल्ली तक सो कॉल्ड जर्नलिस्टों की लाइन लगी है! ये इंटरव्यू कल सुबह होना है और इसे तुम करोगे!’ हमने हामी भर दी क्योंकि ऐसे पी.आर. इन्टरव्यूज़ में किसी तैयारी की ज़रूरत नहीं होती है।