राजा सरजीत सिंह दनकौर के रहने वाले थे। 1857 की क्रांति में दरियाव सिंह, इंदर सिंह, नत्था सिंह, रामबख्शसिंह- इन सबका महत्वपूर्ण योगदान है। ये सभी एक ही परिवार के थे और भाई थे। इनके पूर्वजों का संबंध हस्तिनापुर परीक्षितगढ़ की रियायत से था। परीक्षितगढ़ के राजा कदम सिंह क्रांति का नेतृत्व कर रहे थे इसीलिए दनकौर के सारे गुर्जर तन मन धन से 1857 की क्रांति में शामिल हुए। इनमें 2 लोगों का नाम सर्वाधिक आदर से लिया जाता है- पहला दरियाव सिंह नागर हैं। इन्होंने 14 मई 1857 को सिकंदराबाद को जीता और अंग्रेजों को सिकंदराबाद से भगा दिया, अंग्रेजों का खजाना और हथियार लूट कर क्रांति सेना की ताकत बढ़ाई।
अमृत महोत्सव: जब सरजीत सिंह ने अंग्रेज़ों को खदेड़ दिया था
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- 14 Aug, 2022
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की जिस 1857 की क्रांति में नींव पड़ी थी, उसमें कई ऐसे वीर सपूत थे जिन्होंने अंग्रेज़ों से लोहा लिया था। ऐसे ही वीर सपूतों में से एक राजा सरजीत सिंह थे। जानिए, 1857 की क्रांति में उनके योगदान को।

दूसरे युवा का नाम सरजीत सिंह नागर था। उनके पिता जवहार सिंह दनकौर के जमींदार थे और उनके पास सशस्त्र घुड़सवारों की बड़ी संख्या मौजूद थी। सरजीत सिंह हस्तिनापुर के राजा कदम सिंह के विश्वासपात्र थे। जब 18 मई को लाल किले का दरबार लगा और वहां अलग-अलग जिलों में अलग-अलग क्षेत्रों में क्रांति की जिम्मेवारी अलग-अलग वीरों को दी गई, उसी दिन बुलंदशहर से अंग्रेजों के सफाये का फैसला हुआ।