पिछले चुनाव से आज तक केंद्र सरकार के शीर्ष पर बैठे लोग दावा कर रहे हैं कि पिछले पांच वर्षों में आठ करोड़ नौकरियाँ बढीं और विपक्ष गलत “नरेटिव” (आख्यान) “सेट” कर रहा है. दावे में यहाँ तक कहा गया कि कोरोना और उसके बाद के काल में रोजगार में जबरदस्त वृद्धि हुई. सरकार को झूठ बोलने के लिए कुछ खास नहीं करना पडा. बस, रोजगार की परिभाषा को थोडा सा विस्तार दे दिया गया. याने कोरोना काल में एडी रगड़ते हुए वापस गाँव पहुँच युवाओं को जब दोबारा-तिबारा भी शहरों में उद्योगों के ठप होने से नौकरियाँ नहीं मिली तो मरता क्या न करता. वे वापस गाँव जा कर बगैर किसी वेतन के रहने-खाने के एवज में खेती में, घर की दूकान में, पशु चराने में और गाहे-ब-गाहे आस-पास के जमीनदारों की सेवा में बगैर किसी पैसे के काम करने लगे. पीएम मोदी जी के “पकौड़ी की दूकान भी रोजगार है” को मजबूरन यथार्थ रूप देते हुए खोमचा लगाने लगे. इन सबको मोदी जी की सरकार ने रोजगार मान लिया.
नौकरियों पर बार-बार झूठः गलत दावों ने सरकार का इकबाल घटाया
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- 29 Mar, 2025

झूठो बोलो, बार-बार झूठ बोलो। बेरोजगारी, स्वास्थ्य, महंगाई से लेकर तमाम ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर सरकार का झूठ बार-बार पकड़ा जाता है। वरिष्ठ पत्रकार एनके सिंह झूठ पर क्या कह रहे हैं, जानिएः