इरशाद खान सिकंदर उर्दू- हिंदी के शायर भी हैं और नाटककार भी। ये बहुत कम होता है कि उर्दू के शायर को हिंदी का शायर भी कहा या माना जाए। यों पिछले कई बरसों से हिंदी में गजल लेखन का सिलसिला आगे बढ़ते हुए एक लंबी दूरी तय कर चुका है फिर भी लोंगों के जेहन में उर्दू में गजल अलग है और हिंदी अलग। पर इरशाद खान सिकंदर उर्दू के ऐसे गजलगो हैं जिनको हिंदी का गजलगो भी कहा जा सकता है। इसलिए कि उनकी गजलों की जो शब्दावली है उसके आधार पर इस बात का फर्क करना कठिन है कि कौन सा शब्द सिर्फ हिंदी का और कौन सा सिर्फ उर्दू का। यानी उनके यहां गजल का रूप तो फारसी गजल का है लेकिन शब्दावली अपवादों को छोड़ दें तो हिंदी वाली। लेकिन उर्दू की परंपरागत शायरी पर भी उनकी पूरी पकड़ है। इसका एक बड़ा सबूत तो उर्दू के मशहूर शायर जॉन एलिया पर लिखा उनका नाटक है `ज़ॉन एलिया का जिन्न’। इसे कई महीने पहले रंजीत कपूर ने निर्देशित किया था। इसे हिंदी और उर्दू- दोनों के ही दर्शकों ने सराहा था।