तक़रीबन 20 साल पहले देहरादून में पोस्टिंग के दौरान हमारे सीनियर और दोस्त मरहूम तेजिन्दर सिंह गगन ने एक कहानी का ज़िक्र किया था। कहानी थी 'शामिल बाजा' जो उनके कथाकार साथी शशांक ने लिखी थी। गगन ने हमें शामिल बाजा का मतलब ये समझाया था कि बारातों में बजने वाले ब्रास बैंड में एक 'डमी' बाजा होता है जिसका कोई राग नहीं होता। बस ज़ोर से फूंक मारने पर एक ही स्वर निकालता है और उसकी ब्रास बैंड में महज़ एक शिरकत भर होती है। तेजिन्दर गगन ने ये भी बताया कि अक्सर ये बाजा ट्रेनीज़ के हवाले होता है जो अमूमन बच्चे होते हैं। इस लिहाज़ से बाजे के साथ शामिल बच्चों को भी 'शामिल बाजा' कहा जाना चाहिए!